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________________ 11. स्थानांग; 2 / 2-37 12. तत्त्वार्थसूत्र; 6/6 13. आचारांग द्वितीय श्रुतस्कंध; 2/2/34 . अंगसुत्ताणि - भाग 1, कालाइक्कंत - किरियापदं - से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ - कुलेसुवा, परियावसहेसु वा, जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता तत्थेव भुज्जो संवसंति अयमाउसो ! कालाइक्कंत - किरिया भवइ । 14. वही; 2/2/35 15. वही; 2 /2 / 36 16. वही; 2/2/37 17. वही; 2/2/38 18. वही; 2/2/40 19. वही; 2 / 2 /41 20. वही; 2/2/42 21. सूत्रकृतांग चूर्णि; पृ. 336, इमेहिं बारसहिं किरिय - ठाणेहिं बुज्झति, मुच्चति तेरसमेणं । 22. भगवई; 1/80 23. ठाणांग; 2 / 2-37 24. तत्त्वार्थसूत्र; 6/6 25. सूत्रकृतांग चूर्णि; पृ. 336 - 26. ठाणांग; 5/111 27. सूत्रकृतांग श्रुतस्कंध द्वितीय 2/2/1 टिप्पण; पृ. 137 से उद्धृत 28. वही; 2/2/3 29. वही; 2/2/4 30. वही; 2/2/7 31. मज्झिमनिकाय, उपालि सुत्त मनोपुव्वंगमा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया । मनसा चे पदुट्ठेन वा करोति वा । ततो नं दुक्ख मन्वेति चक्कं व बहतो पदं ।। (धम्मपद, प्रथम गाथा ) 32. आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन; पृ. 541 क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 111
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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