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________________ सम्बन्ध - सेतु है - क्रिया । ईर्यापथिक क्रिया के अलावा सभी क्रियाएं कर्म - बंधन में निमित्त हैं। क्रिया के अभाव में कर्म का बंधन नहीं होता। कहा गया है- 'अक्रिया योगनिरोधलक्षणा गति, प्रकंपन अर्थात् योगनिरोध अक्रिया है। 238 शैलेशीकरण की अवस्था में एनादि क्रियाएं बंद हो जाती हैं, आत्मा और कर्म का सम्बन्ध समाप्त हो जाता है। कर्म शोधन से अक्रिय की अवस्था प्राप्त हो जाती है। तत्पश्चात् प्राणी क्षणभर में परिनिर्वाण को प्राप्त कर सर्व दुःखों का अन्त कर देता है। बंधन मुक्ति की यह सूक्ष्म व्याख्या क्रिया - अक्रिया का विषय हैं। संदर्भ सूचि 1. सूत्रकृतांग चूर्णि ; पृ. 319 2. अमरकोश; 3/3/56 3. (क) सूत्रकृतांग 2 अध्ययन ' गाथा 19 टीका (ख) सूत्रकृतांग 2 अध्ययन ' सूत्र 21, 19 टीका - क्रिया परिस्पंदात्मिका चेष्टा रूपा क्रियते क्रिया वा निर्व्यापार तया स्थिति रूपा क्रियते । सूत्र 17 – क्रियां वा सदनुष्ठानात्मिकाम क्रियां वा असदनुष्ठानरूपाम्। (ग) वही, (घ) वही, पृ. 336; एजनं कंपनं गमनं क्रियेत्यनर्थान्तर । 4. वही, अध्ययन ', सूत्र 17 टीका 5. (क) स्थानांग 2, सूत्र 60 टीका (ख) भगवती; 3 / 3 / 134 110 करणं क्रिया क्रियत इति वा क्रिया । - करणं क्रिया-कर्म बंधनिबंधना चेष्टा इत्यर्थः। क्रिया निष्पाद्यं कर्मोक्तम् । - (ग) पण्णवणा पद; 22, सू. 1567, टीका करणं क्रिया-कर्म बंधनिबंधना चेष्टा इत्यर्थः । 6. स्थानांग वृत्ति; पत्र 37 7. तत्त्वार्थवार्तिक; 6/5 8. ठाणांग 2, पृ. 114 9. भगवती वृत्ति; 1 /444 10. (क) भगवई भाष्य; 1 / 10 / 444 - 445 पृ.192 (ख) ठाणांग सूत्र, 2 / 2-37 पृ. 144 - अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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