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________________ (3) आज्ञाव्यापादिकी क्रिया (Arbitrary Interpretation of Scriptural Teachings) 'आणवणिया' शब्द के वृत्तिकार ने दो अर्थ किये है-आज्ञा देना और मंगवाना।196 आदेश देने या वस्तु मंगवाने के निमित्त से जो क्रिया हो वह आज्ञापनिका, आनायनिका क्रिया होती है। इसमें शब्द और अर्थ दोनों का भेद है। तत्त्वार्थ वार्तिक में इसके स्थान पर आज्ञाव्यापादिका क्रिया का उल्लेख है। इसका तात्पर्य है- चारित्र मोह के उदय से आवश्यक आदि क्रिया करने में असमर्थ होने पर शास्त्रीय आज्ञा का अन्यथा निरूपण करना।197 स्थानांग वृत्तिकार ने जीव और अजीव की दृष्टि से इसके दो प्रकार बतलाये हैं- जीव आज्ञापनिका और अजीव आज्ञापनिका। जीव आज्ञापनिका जीव के आज्ञा करने अथवा लाने के निमित्त से होने वाली अर्थात् दूसरे द्वारा जीव को आज्ञा करने तथा लाने के निमित्त से होने वाली क्रिया जीव आज्ञापनिका क्रिया है। इसी प्रकार अजीव से सम्बन्धित अजीव आज्ञापनिका क्रिया है। (4)अनाभोग प्रत्यया क्रिया-(Occupying Uninspected and Unswept Places and Leaving Things There) "अनाभोग-अज्ञानं प्रत्ययो-निमित्तं यस्या सा तथा", अर्थात् अज्ञान के निमित्त से होने वाली क्रिया अनाभोग प्रत्यया है। 198 दूसरे शब्दों में, अयतनापूर्वक गमन, प्रमार्जन, प्रतिलेखन आदि करने से होनी वाली क्रिया अनाभोग प्रत्यया है। आगम सूत्रपाठ में इसके दो भेद निर्दिष्ट हैं- अनायुक्त आदानता, अनायुक्त प्रमार्जनता। अनायुक्त आदानता- असावधानी से वस्त्र, पात्र, उपकरण आदि उठाना। अनायुक्त प्रमार्जनता- असावधानी से पात्र आदि का प्रमार्जन करना। इनमें निक्षेप-उपकरण आदि रखने का अर्थ समाहित नहीं है। सूत्रकार को उसे आदान के द्वारा गृहीत करना विवक्षित है। तत्त्वार्थ सूत्र की व्याख्याओं में अप्रमार्जित और अदृष्टभूमि में शरीर, उपकरण आदि रखना अनाभोग प्रत्यया क्रिया है।199 92 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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