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________________ चतुर्थ क्रियापंचक चतुर्थ क्रियापंचक में निम्नोक्त पांच क्रियाओं का समावेश है अनाभोग क्रिया yeajat (क्रिया) वैदारिणी पादिकी आज्ञा व्य (1) नैसृष्टिकी क्रिया (Approving of an Evil Act) स्थानांग वृत्तिकार ने नैसृष्टिकी क्रिया के दो अर्थ किये हैं- फेंकना और देना । तत्त्वार्थ वार्तिक और सर्वार्थसिद्धि में नैसृष्टिकी क्रिया के स्थान पर निसर्ग क्रिया का उल्लेख है। वृत्तिकार ने भी इसका वैकल्पिक अर्थ निसर्ग किया है। निसर्ग क्रिया का अर्थ है- पापादान आदि प्रवृत्ति के लिये अपनी सम्मति देना अथवा आलस्य वश प्रशस् क्रियाओं को न करना । 190 श्लोकवार्तिक में भी ये दोनों अर्थ उपलब्ध हैं। 191 उसके दो विभाग हैं- जीव नैसृष्टिकी, अजीव नैसृष्टिकी । जीव नैसृष्टिकी - राजा आदि की आज्ञा से यंत्र के माध्यम से जल का उत्पेक्षण अथवा गुरू के समीप शिष्य और पुत्र को छोड़ने के निमित्त से उत्पन्न क्रिया जीव नैसृष्टिकी है। 192 अजीव नैसृष्टिकी- बाणादि फेंकने के निमित्त से होने वाली अथवा गुरू आदि को शुद्ध भक्त - पानादि का दान देने के निमित्त से होने वाली क्रिया अजीव नैसृष्टिकी है। (2) वैदारिणी क्रिया (Divulging the Sins of Others) क्रियाओं के चतुर्थ वर्ग में आज्ञापनिका और वैदारिणी दो क्रियाएं निर्दिष्ट है। किसी वस्तु को फाड़ने या विदारने से अथवा दूसरों के द्वारा की गई सावद्य आदि क्रियाओं का प्रकाशन करने के निमित्त से होने वाली क्रिया वैदारणिकी क्रिया कहलाती है। तत्त्वार्थ भाष्य तथा उसकी समस्त व्याख्याओं में विदारण क्रिया का अर्थ है - दूसरों द्वारा आचरित निंदनीय कर्म का प्रकाश । 193 वहां विदारण का अर्थ स्फोट किया है। इसका तात्पर्य है - गुप्त बात का प्रकाशन करना। 194 वैदारिणी क्रिया की व्याख्या से ऐसा प्रतीत होता है कि वृतिकार के सामने उसकी निश्चित अर्थ - परम्परा नहीं रही है इसलिये उन्होंनें विदारण, विचारण और वितारण इन शब्दों से उसे व्याख्यायित किया है। किसी जीव विदारण करना, जीव-अजीव वैदारणिकी क्रिया है। आदि), अजीव (मूर्ति, शंख आदि ) वस्तु को बेचते हुए ठगने के अभिप्राय से उनमें अविद्यमान गुणों का वर्णन करना जीव अजीव वैदारणिकी क्रिया है । 19: - अजीव वस्तु का फाड़नाकिसी जीव (घोड़ा, गाय क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 91
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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