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________________ में सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि में निम्नांकित क्रिया की संभावना बतलाई गई है सम्यग्दृष्टि चार क्रियाएं (1) आरंभिकी (2) पारिग्रहिकी (3) माया प्रत्यया (4) अप्रत्याख्यान क्रिया 84 नैरयिक जीव मिथ्यादृष्टि पांच क्रियाएं आरंभिकी यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्यया मनुष्य मिथ्यादृष्टि सम्यग्दृष्टि संयत असंयत संयतासंयत सम्यग्मिथ्यादृष्टि पांच क्रियाएं आरंभिकीयावत् मिथ्यादर्शन प्रत्यया सम्यग्मिथ्यादृष्टि 5 क्रियाएं आरंभिक यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्यया 5 क्रियाएं आरंभिक यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्यया प्रमत्त संयत अप्रमत्त संयत वीतराग इन क्रियाओं की अपेक्षा अक्रिय हैं। नैरयिकों की तरह वैमानिक तक वक्तव्य है। संयतासंयत में तीन क्रियाएं हैं। उनमें अप्रत्याख्यान की क्रिया नहीं है। संयतासंयत शब्द संयत और असंयत के योग से बना है। संयत तो है, संयत में असंयत भी है फिर अप्रत्याख्यान की क्रिया का उल्लेख क्यों नहीं ? वृत्तिकार इस प्रश्न के समाधान में मौन है। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने अवश्य इस संदर्भ में विमर्श किया है। 153 उन्होंनें लिखा कि संयतासंयत में अप्रत्याख्यान क्रिया का स्कंध (पूर्णरूप) नहीं होता। इस अपेक्षा से सूत्रकार ने कारण को स्पष्ट नहीं किया है। उसके समर्थन में संवादी प्रमाण प्रस्तुत किये हैं। वे है (1) गौतम के प्रश्न पर महावीर ने कहा- ' - पूर्व दिशा में धर्मास्तिकाय नहीं है। उसका देश-प्रदेश है। 154 (2) आग्नेय कोण में जीव नहीं है, उसका देश-प्रदेश है । 155 यहां धर्मास्तिकाय और जीव का निषेध स्कंध की अपेक्षा से है। इसी प्रकार संयतासंयत में स्कंध की अपेक्षा अप्रत्याख्यान क्रिया का ग्रहण नहीं किया गया है। अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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