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________________ वृत्तिकार का मानना है कि ये सब शब्द एकार्थक भी हो सकते हैं और अपेक्षा भेद से भिन्नार्थक भी। किसी जीव या अजीव वस्तु के प्रति अहंकार या मान कषाय मोहनीय कर्म के उदय या उदीरणा से होता है। सभी जीवों में यह क्रिया होती है।42 यदि कोई जाति आदि के अभिमान वश दूसरों का पराभव, तिरस्कार आदि करता है, वह गर्भ के पश्चात् गर्भ, जन्म के पश्चात् जन्म, मृत्यु के पश्चात् मृत्यु, नरक के पश्चात् नरक को प्राप्त होता है और जन्म-मरण की वृद्धि करता है। (10) मित्रदोष प्रत्ययिक- मित्र, ज्ञाति आदि को ताप देने से जो क्रिया होती है वह मित्रदोष प्रत्ययिकी है।43 परिवार के सदस्यों द्वारा छोटा सा अपराध हो जाने पर उन्हें भारी दंड देना जैसे-गर्म पानी से शरीर का सिंचन करना, अग्नि से शरीर को दागना, चमड़ी उधेड़ना, बेंत, रस्सी, छड़ी आदि से पीटकर लहुलुहान कर देना आदि। इस प्रकार की प्रवृत्ति से पारिवारिक क्लेश, दौर्मनस्य की वृद्धि तथा कर्मबंध होता है।44 (11) माया प्रत्ययिक- माया प्रत्ययिक का तात्पर्य छल-कपट से होने वाली प्रवृत्तियां है। मायाचार से जीविका उपार्जन करना, गला काटना, संधिच्छेद करना, दूसरों में विश्वास उत्पन्न कर ठगना। अपने अज्ञान को ढकने के लिये व्यर्थ शब्दाडम्बरों का प्रयोग करना ऐसी प्रवृत्तियों से कर्मबंध, मायाचार में वृद्धि और दुर्गति की प्राप्ति होती है। (12) लोभ प्रत्ययिक- किसी व्यक्ति या पदार्थ के प्रति कामना, लिप्सा, लालसा, आसक्ति और मूर्छा इत्यादि के कारण होने वाली क्रिया लोभ-प्रत्ययिकी है। आचारांग में लोभ के निम्नोक्त रूपों का निर्देश मिलता है। जिजीविषा- जीने की कामना। प्राणियों में अनेक प्रकार की एषणाएं होती है, उनमें जिजीविषा प्रथम है। प्राणी जीने के लिये परिग्रह का संचय करता है, क्रूर-कर्म और हिंसा भी करता है। प्रशंसा-आचारांग वृत्तिकार ने परिवन्दण शब्द का अर्थ प्रशंसा किया है। जीवन की पुष्टि या प्रशंसा के लिये हिंसात्मक प्रवृत्तियों में प्रवृत्त होता है। 45 मानन-सम्मान के लिये हिंसा की जाती है। आचारांग भाष्यकार आचार्य महाप्रज्ञ ने 'मानन' शब्द पर दो दृष्टियों से विचार किया है अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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