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________________ ६. लोगस्स और कायोत्सर्ग यात्रा अथवा किसी नये कार्य के प्रारंभ में नमस्कार महामंत्र अथवा लोगस्स का कायोत्सर्ग करना मंगलदायक माना गया है। तीन, नौ या इक्कीस नमस्कार महामंत्र का कायोत्सर्ग किया जा सकता है। कायोत्सर्ग कर कार्य करने चलें और यदि अपशकुन हो जाये तो दूसरी बार वहीं पर नौ नवकार का कायोत्सर्ग कर आगे चलें। फिर अपशकुन हो जाये तो वहीं पर इक्कीस नवकार का कायोत्सर्ग कर चलना चाहिए। तीसरी बार भी यदि बाधा आ जाए तो सोचना चाहिए इस काम को करना हितकर नहीं है। उसे उस समय छोड़ देना, चाहिए। भारतीय साहित्य में एक धार्मिक व्यक्ति को वीर योद्धा माना जाता है क्योंकि जितनी शक्ति एक सैनिक को युद्धस्थल में चाहिए उससे अधिक शक्ति एक आध्यात्मिक योद्धा में चाहिए। वह रण-प्रांगण में नहीं, अपने आप से लड़ता है तथा इंद्रिय, मन व इच्छाओं पर विजय प्राप्त करता है। इस आत्म समरांगण की विजय में भी पूरी शक्ति चाहिए। जीवन की इस लड़ाई में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो ध्यान और एकाग्रता का अभ्यास करता है। साधना के क्षेत्र में कोरी एकाग्रता ही पर्याप्त नहीं होती उसके साथ मन की निर्मलता भी आवश्यक है क्योंकि मन की निर्मलता से ही शक्ति बढ़ती है। आगम और कायोत्सर्ग चेतना में अनेक प्रकार की शक्तियां हैं-ज्ञान की शक्ति, पवित्रता की शक्ति और आत्मा की शक्ति। इन शक्तियों को जागृत करने की प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति में प्रमुख रूप से आठ इकाइयाँ हैं। १. कायोत्सर्ग २. अन्तर्यात्रा ३. श्वास प्रेक्षा ७२ / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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