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________________ संपूर्ण ऊर्जा को संग्रहित व संप्रेषित कर उनकी प्रज्ञा के द्वार खोल दिये। संघ को आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महातपस्वी, महासाधक, महाप्रतापी आचार्य की उपलब्धि भी उनकी पैनी दृष्टि का ही सुपरिणाम है। निश्चय ही वे एक मंत्र-कोविद आचार्य थे। लोगस्स आदि कई मंत्रों की उन्हें सिद्धि प्राप्त थी। समय-समय पर संघ की सारणा-वारणा में भी उन्होंने अपनी इस विद्या का उपयोग किया। उनकी आध्यात्मिक संपदा अकूत थी। उन्होंने आचार्य श्री महाप्रज्ञजी और आचार्य श्री महाश्रमणजी को भी इस विधा में पारंगत किया। इसकी पुष्टि में गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का एक पत्र यहां उधृत किया जा रहा है - महाश्रमण शिष्य मुदित सुखपृच्छा! तुम्हें महाप्रज्ञ की सेवा का अपूर्व अवसर मिला है। अपना दायित्व जागरुकता के साथ निभाना। उनकी केवल उपासना ही नहीं करनी है, उनसे कुछ उपलब्धियां भी हासिल करनी हैं। तुम्हें महाप्रज्ञ के पास ज्ञान, ध्यान और कुछ मंत्र पद आदि की विधियां हासिल करने का सलक्ष्य प्रयास करना चाहिए। ऐसा करना तुम्हारे भविष्य के लिए ही नहीं, संघहित में भी उपयोगी होगा। गणाधिपति तुलसी सारांश में इतना ही कहा जा सकता है कि लोगस्स एक अपराजित मंत्र है क्योंकि अन्य किसी भी मंत्र के द्वारा इसकी शक्ति प्रतिहत (अवरुद्ध) नहीं होती, इसमें असीम सामर्थ्य निहित है। इसकी साधना सर्वकाल एवं सर्वदृष्टि से मंगलकारी, कल्याणकारी, शुभंकर एवं सर्व सिद्धिदायक है। संदर्भ १. जैन भारती, फरवरी १६६५, पृ./६५-६६ 7 मुनिश्री राजेन्द्र कुमारजी के २. वही, पृ./६८-६६ - लेख से उधृत। ३. महात्मा महाप्रज्ञ-पृ./१४१ ४. साधना के श्लाका पुरुष गुरुदेव तुलसी-पृ./ लोगस्स-आध्यात्मिक पदाभिषेक / ७१
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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