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________________ और पवित्र, नीला रंग भी शीतल और पवित्र, विशुद्धि-केन्द्र भी शीतल और पवित्र तथा अरिहंत और सिद्ध भगवन्त भी शीतल (शुक्ल लेश्या) और पवित्र-यह एक अनुपम और अद्वितीय प्रयोग है-पवित्रता को बढ़ाने का और शुभ लेश्याओं में अनुवर्तन करने का। __ कण्ठ संयोजक है। यह अधो भाग को उर्ध्वभाग से संयोजित करता है। इसमें थाईराइड है। इसमें चयापचय की क्रिया होती है जो रोग-मुक्त, शोक-मुक्त, चिरंजीवी होना चाहता है वह विशुद्धि-केन्द्र को जागृत किये बिना क्या सफल हो सकता है? हमारे शरीर में नौ ग्रह हैं उनमें सूर्य का स्थान तैजस् केन्द्र और चंद्रमा का स्थान विशुद्धि-केन्द्र है। ज्योतिष चन्द्रमा के आधार पर व्यक्ति के मन की स्थिति को पढ़ता है। तैजस-केन्द्र हमारे शरीर में वृत्तियों को उभारता है और विशुद्धि-केन्द्र उन पर नियंत्रण करता है। . . . . दीर्घजीविता का रहस्य विशुद्धि-केन्द्र पर 'सागरवरगंभीरा' पद्य का नीले रंग में ध्यान-इसका गूढार्थ इतने उच्च शिखर पर पहुँचा हुआ है जिसको साधारण बुद्धि से समझना अत्यन्त कठिन है। यहां ध्यान करने से निम्न गुणों का उद्दीपन सहज हो जाता है• मनोबल की वृद्धि। • बौद्धिक चेतना की सक्रियता। • मन की सक्रियता में वृद्धि। • सकारात्मक सोच व सकारात्मक दृष्टि का विकास। शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य में वृद्धि। चयापचय की क्रिया का संतुलन। • वृत्तियों पर नियंत्रण-प्रमाणिकता, सत्य-निष्ठा आदि चारित्रिक गुणों का विकास। • चंचलता पर नियंत्रण। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने 'साधना और सिद्धि' में लिखा है-“सागरवर गंभीरा"-यह प्रयोग विशुद्धि-केन्द्र पर किया जाता है। यह हमारे शरीर में चयापचय का स्थान है। इसका पाचन तंत्र और स्वास्थ्य के साथ बहुत गहरा संबंध है। पाचन तंत्र का संबंध वृत्तियों के साथ जुड़ा हुआ है। आहार और वृत्तियों का भी गहरा संबंध है। वृत्तियों के व्यक्त और अव्यक्त होने में आहार का बहुत बड़ा योग है। अगर आपका आचरण स्वस्थ है तो चिंतन भी स्वस्थ होगा। मस्तिष्क -एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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