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________________ बोहिलाभं समाहि वर मुत्तमं दित" इस मंत्र को पूर्व निर्दिष्ट विधि के अनुसार नियमित अभ्यास पूर्वक चेतन करें। जिस दिन साधना प्रारंभ करें, ध्यान दें, शरीर और मन की स्थिति क्या है? एक माह पश्चात निरीक्षण करें कि आप किस स्थिति तक पहुँच गये हैं। यह निर्विवाद सत्य है कि लक्ष्य सिद्धि हेतु सिद्धि का ध्यान और सिद्धि का संकल्प सफलता का अमोघ उपाय है। सिद्धि के लिए साधना के प्रयोग आवश्यक हैं और प्रयोग की सफलता हेतु स्थिरता और नियमितता अपेक्षित है। यह सच्चाई है कि जितनी चंचलता कम होगी उतनी साधना फलवती बनेगी। मनुष्य सत् पुरुषार्थ करें और मानसिक ग्रंथियों को स्वस्थ रखें तो बंधे हुए कर्म भी विफल हो जाते हैं। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आरोग्य, बोधि लाभ और समाधि का मूल सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व से प्रारंभ हो ज्ञान, दर्शन, चारित्र से गुजरती हुई आत्मा प्रथम गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक की जो यात्रा तय करता है उसकी तुलना धरातल से किसी पहाड़ की चोटी तक पहुँचने से की जा सकती है। जिस तरह चोटी तक पहुँचने हेतु धरातल पर से अनेकों जगहों से प्रारंभ हुआ जा सकता है, उसी प्रकार मुक्ति शिखर तक पहुँचने के लिए अनेकों आरंभ बिंदु हो सकते हैं, जैसे-सद्गुरु के प्रति श्रद्धा, अन्तर्निहित पौरुष, किसी घटना के संयोग से सम्यक्त्व की उपलब्धि, अर्हत् दर्शन अथवा कोई ओर कारण। इस दुरुह यात्रा में आत्मा किसी ऊँचाई से गिर भी सकती है जैसे असावधानी वश पहाड़ से व्यक्ति गिर सकता है। अतः चोटी को प्राप्त करने हेतु सतत् जागरूकता और प्रयास अनिवार्य है तथा संकल्प की दृढ़ता भी अपेक्षित है। यद्यपि शुभ-अशुभ कर्म निमित्त कारणों में परिवर्तन तो ला देते हैं किंतु मन का संकल्प इन निमित्तों में सर्वश्रेष्ठ निमित्त कारण है। इससे जितना परिवर्तन संभव है किसी ओर निमित्त से नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अपने निश्चय में एक निष्ठ होता है उसके लिए कठिन से कठिन कार्य भी सरल बन जाता है। संकल्प में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति की सभी शक्तियां निहित हैं। संकल्प एक कल्पवृक्ष है जिससे व्यक्ति अनंत आनंद को प्राप्त कर सकता है। श्रद्धा संकल्प की पृष्ठभूमि और मेरुदण्ड है। श्रद्धा के अभाव में संकल्प में दृढ़ता नहीं आ सकती। यदि किसी भी मंजिल का सोपान है, वहां सिद्धि अवश्य है। किसी भी कार्य सिद्धि की प्रथम शर्त है श्रद्धा। जितना विश्वास बढ़ता है उतनी सिद्धि की आशा बढ़ती है। महात्मा गांधी का कथन है-“संकल्प से व्यक्ति अपने भाग्य को बना सकता है वह दिव्य ज्योति को प्रज्ज्वलित कर सकता है।" जल पूर्ण कुंभ शुभ और सुन्दर होता है तथा मंगलमयता का प्रतीक भी हो जाता है। हरा-भरा वृक्ष मनोहारी और आकर्षक होता है और वन की शोभा भी समाहिवर मुत्तमं दिंतु-१ / २६
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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