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________________ अक्षय भंडार महाराणा को समर्पित कर दिया। जिससे उन्होंने अपना साम्राज्य पुनः प्राप्त किया। मूलतः मंत्रों में वह शक्ति है जिससे व्यक्ति आधि, व्याधि और उपाधि का समाधान कर समाधि का वरण कर सकता है। जब व्यक्ति आधि, व्याधि और उपाधि से मुक्त हो सर्वोच्च समाधि दशा में पहुँच जाता है तब आत्मा का पतन नहीं होता। इसलिए लोगस्स में केवल समाधि की मांग नहीं की गई है अपितु 'समाहिवरमुत्तमं' कहकर उत्तम श्रेष्ठ समाधि की कामना व्यक्त की गई है। जिस प्रकार सेना युद्ध में विजय श्री पाने हेतु पहले से ही अभ्यास करती रहती है। वर्तमान युग में खिलाड़ी क्रिकेट मैच जीतने के लिए पहले से ही अभ्यास करते रहते हैं इसी प्रकार समाधि साधना हेतु साधक विषयों को जीतने का अभ्यास करता रहे। दूसरी बात किसी भी कार्य को साधने के लिए मन को तो नियंत्रण में रखना ही पड़ता है, जैसे विद्यार्थी को अच्छे अंकों की प्राप्ति हेतु टी.वी., खेल आदि छोड़ने पड़ते हैं। व्यापारी को धन कमाने हेतु घूमना, फिरना छोड़ना पड़ता है। तात्पर्य यह है कि सांसारिक सिद्धियों के साधक को भी सभी प्रतिकूल बातें सहनी पड़ती हैं तो फिर शाश्वत सिद्धि पाने के लिए तो साधक को चाहिए कि सभी प्रतिकूल विषयों को भी समभाव से सहन करें। इससे आत्मशक्ति का जागरण होता है। __शांति, स्वस्थता और आनंद के लिए भगवान महावीर ने दो महत्त्वपूर्ण उपाय सुझाये हैं-'जागर वेरोवरए', 'खणं जाणाहि पंडिए' अर्थात् जागो, किसी के साथ वैर, विरोध या शत्रुता के भाव मत रखो। ज्ञानी वही है जो प्रतिक्षण जागरूक रहता है, समय का अंकन करता है। निष्कर्ष सूक्ष्म जड़ परमाणुओं से निर्मित यह पारदर्शी मन बोध स्वरूप आत्मा का अन्तःकरण/भीतरी यंत्र है। वह प्रकाश का उत्स नहीं है, आत्मा से प्रकाश लेता है और सबको उद्भाषित करता है। मन ज्ञानात्मक नहीं ज्ञान का एक साधन है। यही कारण है कि साधना के क्षेत्र में चैतन्य जागरण की प्रक्रिया पर अधिक बल दिया गया है। यद्यपि जागरण की प्रक्रिया मन को अनुशासन में रखने पर ही संभव है। क्योंकि आनंद सुख नहीं, सुख-दुःख दोनों से परे है। उसे शरीर और मन के स्तर पर कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। लोगस्स एक शक्तिशाली स्तव/मंत्र है। इसका पूरा कल्प है। द्रव्य और भाव आरोग्य, बोधि लाभ और उत्तम समाधि की प्राप्ति के संकल्प के साथ 'आरोग्ग २८ / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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