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________________ वैराग्य, निर्वेद, संवेग रस की अमिय धारा बहा देती है। इसका स्मरण करते समय इतिहास की उन अनंत-अनंत दिव्य भव्य आत्माओं के साथ जब हमारी आत्मा का भावना के सेतु द्वारा मधुर मिलन होता है तब जिस अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होती है वह गूंगे के गुड़ की तरह मात्र अनुभव का ही विषय होती है। इसका स्वाध्याय, गायन और उच्चारण करते समय उत्कृष्ट भाव रसायन का स्पर्श होता है वह कुछ ऐसा अलौकिक है कि मन का कण-कण प्रफुलित हो जाता है। यह मेरा स्वयं का भी पन्द्रह वर्षों का अनुभव है। मैं पन्द्रह वर्षों से निरन्तर इस चौबीसी का स्वाध्याय कर रही हूँ। इस स्वाध्याय से आनंद, प्रसन्नता और संतोष-ऐसी विलक्षण रसानुभूतियां होने लगती हैं कि हृदय गद्गद् हो उठता है। आँखों में आनंदाश्रु बहने लगते हैं। एक अपूर्व रोमांच उत्पन्न होकर मन भक्ति की गंगा या विनय की सुरसरिता में डुबकियां लेने लगता है। कभी-कभी तन्मयता की ऐसी धारा जुड़ती है कि शरीर अपने आसन पर और मन आत्म शासन पर केन्द्रित हो जाता है। जयाचार्य की सहज स्फुरित शब्दावली में अलंकार प्रयोग नहीं किंतु चमत्कार प्रयोग अवश्य ही है। एक अज्ञात प्रेरणा, शक्ति और बल मस्तिष्क में स्फुरित होने लगता है। विविध राग-रागिनियों से रचकर उसे सौंदर्य से अभिमंडित किया है। इनमें हृदय को छूने वाली रसात्मकता है। भक्ति के समस्त भाव इन गीतों में सहज रूप से अंकित हैं। साख्य, दास्य, माधुर्य आदि भावों की अभिव्यंजना पक्षी की सहज किलोल की तरह शिशु की सहज किलकारी के समान तथा पवन की मुक्त हिलोर के समान हर्ष विभोर कर देती है। शब्द शिल्प रमणीय है। इनमें स्तवनों की तरह भक्ति की सहजानुभूति तरंगित है। महायोगी और विशिष्ट तत्त्वज्ञानी आचार्य तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्री मज्जयाचार्य प्रख्यात प्रभावशाली जैनाचार्य हुए। ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय आदि में रमण करने वाले वे एक अध्यात्म योगी और विशिष्ट तत्त्वज्ञानी आचार्य थे। उनकी प्रज्ञा जागृत थी। उनका चिन्तन बड़ा व्यापक और व्यक्तित्व बहुत कर्मशील था। उनकी विद्वता कोरी शास्त्रीय नहीं अनुभूत-स्निग्ध थी। उनके जीवन की एक-एक घटना अपने आप में इतिहास है। जन्म के बाद जब उनकी जन्मकुडली एक ज्योतिष को दिखाई गई तो उसने उनके राजा बनने की घोषणा की। दीक्षित होने के बाद उनके दिल्ली चातुर्मास में भी एक ज्योतिषी की दृष्टि उनके चरण चिह्नों पर पड़ी और उसने कहा-आप निश्चय ही एक विशाल धर्म संघ के अत्यन्त सूझबूझ वाले पारदर्शी अधिशास्ता बनेंगे। जयाचार्य ने धर्म संघ के अधिशास्ता बनकर इन भविष्यवाणियों को साकार कर दिखलाया। चौबीसी और आचार्य जय / १४१ .
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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