SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान केन्द्रित पर चौबीस तीर्थंकरों का नाम स्मरण करने से भावों की विशुद्धि बढ़ती है। सब प्रकार की अनुकूलताएं प्राप्त होती हैं। णमो अरहताणं का जप इस चक्र पर करने से माया की भावना का क्षय होता है। आज्ञा चक्र मध्य मस्तिष्क में, भ्रू मध्य के ठीक पीछे मेरुदण्ड के शीर्ष पर आज्ञा-चक्र स्थित है। इस केन्द्र को अन्य कई नामों से भी जाना जाता है, जैसे तृतीय नेत्र, ज्ञानचक्षु, त्रिवेणी, गुरु-चक्र और शिव नेत्र। आज्ञा चक्र का प्रतीक रजत वर्णी दो दल वाला कमल है, जो सूर्य एवं चन्द्र या पिंगला (धनात्मक प्रवाह) एवं इड़ा (ऋणात्मक प्रवाह) का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये दोनों प्राण प्रवाह, जिसमें द्वैत भाव की अनुभूति होती है, इस केन्द्र में सुषुम्ना में मिल जाते हैं। कमल के मध्य में पवित्र बीज मंत्र 'ॐ' है। इस चक्र का तत्त्व मानस है। इसी केन्द्र में प्रज्ञा और अन्तर्दृष्टि का विकास होता है। आज्ञा चक्र के जागृत होते ही मन स्थिर एवं शक्तिशाली हो जाता है और प्राण के ऊपर पूर्ण नियंत्रण स्थापित होता है। अतीन्द्रिय स्तर पर यह 'बिंदु' मानसिक एवं अतीन्द्रिय आयामों के बीच सेतु का निर्माण करता है। अतः दिव्य दृष्टि, दूर श्रवण एवं दूर संवेदन जैसी अतीन्द्रिय क्षमताओं को प्रदान करने का श्रेय इस चक्र को जाता है। आज्ञा चक्र पर एकाग्रता साधने के लिए भ्रू मध्य का उपयोग किया जाता है। इस केन्द्र पर एक छोटी ज्योति या 'ॐ' के प्रतीक का मानस-दर्शन करें और विचारों को आन्तरिक गुरु पर विचरण करने दें। जप इस चक्र पर यानि भ्रू मध्य पर शांतिनाथजी का जाप अथवा ध्यान करने से समग्र सिद्धियां मिलती हैं तथा सदैव मानसिक प्रसन्नता बनी रहती है। सोमचक्र (बिंदु विसर्ग) ___ इसे ब्रह्म बिंदु चक्र भी कहते हैं। यह ललाट के पास है जो सोम कला अर्द्धचन्द्र की आकृति स्वरूप है इसमें 'अ सि आ उ सा नमः' मंत्र का चंद्र जैसा श्वेत रूप (निर्विकल्प दशा) में ध्यान करना। बिंदु का शाब्दिक अर्थ बूंद और विसर्ग का अर्थ बूंद बूंद गिराना है। इस अतीन्द्रिय केन्द्र को सोम चक्र भी कहते हैं। सोम देवताओं का अमृत है और यह चन्द्रमा का पर्याय भी है। बिंदु-विसर्ग का प्रतीक काली रात्रि में एक लघु अर्द्ध-चन्द्र है। १३० / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy