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________________ और श्वसन संबंधी रोगों से पीड़ित व्यक्ति आसन एवं अन्य योगाभ्यास करते समय अनाहत पर ध्यान कर सकते हैं। अनाहत चक्र पर ध्यान करने के लिए नीले कमल या दो गुंथे हुए त्रिभुजों से निर्मित नीले षट्भुज का मानस-दर्शन करना चाहिए, जिसके मध्य में एक छोटी-सी ज्योति प्रज्ज्वलित है । कल्पना करें कि वायु रहित स्थान पर यह स्थिर निष्कम्प ज्योति है । यह जीवात्मा का प्रतीक है, जो सभी प्राणियों के अंतःकरण में विद्यमान है और सांसारिक प्रपंचों से अप्रभावित रहता है । जप इस चक्र पर नेमिनाथ प्रभु का ध्यान करें अथवा जप करें। तथा षोड़ाक्षरी मंत्र-“ॐ अ सि आयरिय उवज्झाय साहूणं नमः” पद का जप करने से मन, वचन काय योग में दृढ़ता आती है । वाक्सिद्धि प्राप्त होती है। आनंद - केन्द्र ( अनाहत चक्र) पर यह जप अत्यन्त लाभकारी माना जाता है । इस चक्र पर णमो अरहंताणं का ध्यान करने से मान (अहं) का क्षय होता है । विशुद्धि चक्र गर्दन के पीछे भाग में कण्ठकूप के पीछे विशुद्धि चक्र स्थित है । जो शुद्धि करण का केन्द्र है। इसका प्रतीक सोलह पंखुड़ियों वाला कमल पुष्प है। इस कमल का रंग जामुनी है। कमल के केन्द्र में श्वेत वृत्त है, जो आकाश तत्त्व का यंत्र है। इसका बीज मंत्र 'हं' है। इसमें आकाश तत्त्व है। इस चक्र में सम्यक् विचार और विवेक का उदय होता है । विशुद्धि चक्र वाक् तंतु, कण्ठ प्रदेश, थाईराइड और पेराथाईराइड ग्रंथियों को नियंत्रित करता है । इस चक्र पर एकाग्रता का अभ्यास कर शरीर के विकारों और दोषों को ठीक किया जा सकता है। कण्ठ-केन्द्र वह स्थल है जहां अमृत का आस्वादन किया जाता है । यह अमृत एक मधुर रस है, जो बिंदु-चक्र में उत्पन्न होकर विशुद्धि में आता है, जहां उसे परिशोधित एवं परिष्कृत कर सम्पूर्ण शरीर में उपयोग हेतु प्रेषित किया जाता है। इस केन्द्र पर एकाग्रता के लिए एक बड़ी सफेद अमृत की बूंद का मानस-दर्शन करें। अनुभव करें कि हिम-सी शीतल मधुर अमृत-बूंदें विशुद्धि में टपक रही हैं, जो मुझे आनंद से भर रही हैं । जप इस चक्र पर ध्यान केन्द्रित कर “अहं नमः" का जप करें। इस चक्र पर चक्र और तीर्थंकर जप / १२६
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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