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________________ दूसरे पर पड़ता है। किसी व्यक्ति के जीवन में कोई भी घटना अच्छी या बुरी होती है तो ऐसा कहा जाता है कि ऐसा होना आकाश में ग्रहों की स्थिति व स्वयं की दशा, जन्म के ग्रहों पर असर करती है, उस पर निर्भर करता है। सृष्टि में अदृश्य कण से लेकर विकसित जीवन तक सभी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । चाँद, सितारें, सूरज की स्थिति, आकाश गंगाएं, चन्द्र व सूर्य ग्रहण सभी जीवन पर बहुमुखी प्रभाव छोड़ते हैं । ज्योतिष भाग्यवाद अर्थात् अवश्य भावितव्यता का समर्थन नहीं करता । किसी विद्वान ने कहा भी है- "केवल मूर्ख ग्रहों का अनुकरण करते हैं, बुद्धिमान तो उस पर नियंत्रण करते हैं" । ज्योतिष के द्वारा किसी ग्रह के संबंध में पूर्व जानकारी हासिल करके रक्षात्मक कार्यवाही द्वारा व्यक्ति अपनी सुरक्षा कर सकता है । जैसे ज्योतिष के द्वारा किसी ग्रह के विपरीत प्रभाव की जानकारी मिली तो तप, जप, ध्यान आदि से उस ग्रह के परिणाम में परिवर्तन लाया जा सकता है। विज्ञान के अनुसार सभी ग्रहों की किरणें पृथ्वी से टकराती हैं और जीव, निर्जीव सभी पर अपना प्रभाव डालती हैं । कोई भी ग्रह, नक्षत्र या तारा उदय होते समय या अस्त होते समय अथवा स्थान बदलते समय - ऐसे समयों में उनकी किरणों का कोण - Angle बदलता है। तब हमारे रक्त की धाराओं के संचालन में तीव्रता, धीमापन अथवा बदलाव आता है । उनका अन्य अंगों पर भी व्यापक असर होता है। ग्रहों की किरणों का अंश हमारे शरीर में विद्यमान रहता है । इनकी प्रकृति के अनुसार हमारे शरीर में शुभ-अशुभ जो कुछ भी घटित होता है उन्हें अनुकूल या शांतिमय करने हेतु ही प्राचीन मनीषियों ने तीर्थंकरों के जप, महामंत्र का जप तथा चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान आदि की पद्धतियां अपने अनुभव द्वारा विकसित कीं। जिनके द्वारा उनके चेतन तत्त्व को जागृत करके उनके दुष्प्रभावों को दूर किया जाता है । ग्रह शांति और तीर्थंकर जप (रंगों और अध्यात्म ग्रहों के साथ ) तीर्थंकरों के नाम परम मांगलिक हैं। इनका जप मंत्राक्षर के रूप में करते चित्त को नासाग्र पर केन्द्रित करें क्योंकि नाक का संबंध पेरिनियम (मूलाधार) से होता है । नासाग्र पर ध्यान लगाने से प्रवृत्तियां नासाग्र से पेरिनियम तक चली जाती हैं। दूसरी बात ध्यान देने की है कि तीर्थंकरों के मंत्र का प्रयोग भौतिक सिद्धि के लिए नहीं हुआ है चेतना का जागरण उसका प्रमुख उद्देश्य रहा है साथ में विघ्न बाधाएं भी अपने-आप दूर हो जाती हैं । ग्रह शांति के लिए तीर्थंकर भगवन्तों का जप अथवा महामंत्र नवकार का जप करते समय यह भावना रहनी ११६ / लोगस्स - एक साधना - २
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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