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________________ तक पहुँचते-पहुँचते हाथ से गिर पड़ी। चण्ड भी गिर पड़ा। जितने धूप, दीप थे वे सब गिर पड़े। सुदर्शन मुनि अपने स्थान पर खड़े रहे। कुछ समय बाद कायोत्सर्ग संपन्न कर उन्होंने देखा कि सब लोग मूछित पड़े हैं। वे बाहर गये। प्रतीक्षा में खड़े मुनियों को साथ ले वे आगे चले गये। मूर्छा टूटने पर सुकर्ण ने देखा और सोचा एक जैन मुनि से मैं परास्त हुआ हूँ। यह तो मेरा घोर अपमान हो गया है। उसने महाज्वाला की साधना प्रारंभ की। सात पुरुषों की बलि दी। महाज्वाला प्रकट हुई। उसने निर्देश दिया, महाज्वाला को-"सुदर्शन मुनि को अपने परिवार सहित जला डालो।" महाज्वाला वहां पहुँची। कुछ मुनि सुदर्शन के साथ-साथ चल रहे थे। एक वृद्ध मुनि कुछ आगेआगे चल रहे थे। उनके पैरों के पास ज्वाला भभक उठी। वे उससे भस्म हो गये। मुनि सुदर्शन ने इस घटना को देखा और अपने साथी मुनियों को सावधान कर वे कायोत्सर्ग में खड़े हो गये। महाज्वाला ने मुनि गण के चारों ओर ज्वाला प्रज्ज्वलित की पर वह सुदर्शन मुनि के आभावलय तक नहीं पहुंच पा रही थी। वह अपने प्रयत्न में असफल होकर के लौट गई। उसने सुकर्ण से कहा-"मैं जल रही हूँ मुझे शांत करो।" सुकर्ण ने पूछा-सुदर्शन को जला डाला? नहीं जला सकी, महाज्वाला ने उत्तर दिया। सुकर्ण अपना धैर्य खो बैठा। अपने आक्रोशपूर्ण स्वर में कहा-देवी! क्या तुम्हारी शक्ति नष्ट हो गई? ऐसा क्यों हुआ? महाज्वाला ने कहा-“उसके चारों ओर तैजस का अभेद्य कवच है, उसे भेदकर मैं भीतर नहीं जा सकी।"३८ यह आभावलय, यह तैजस कवच कायोत्सर्ग की शक्ति का प्रतिबिम्ब है। इस प्रकार का रक्षा कवच आत्म रक्षार्थ बनाने की विधि प्राचीनकाल में प्रचलित थी। साधक दूसरों के प्रहारों तथा उसके दुष्ट प्रयोगों से स्वयं की रक्षा करने हेतु सजग रहता है। वर्तमान में आचार्यों द्वारा बताई गई आत्मरक्षा विधि वज्रपंजर स्तोत्र व इन्द्र कवच के रूप में प्रचलित है।* नमस्कार महामंत्र, लोगस्स तथा कायोत्सर्ग में एक ऐसी अद्भुत शक्ति है जिससे साधक के चारों तरफ एक सुदृढ़ अभेद्य रक्षा कवच बन जाता है। कोई भी बाहरी शक्ति, आघात, प्रहार, भय, आतंक, रोग, मानसिक क्लेश, अशुभ शक्ति आदि के दुष्ट प्रयोग उसका बाल भी बांका नहीं कर सकते। ____ भगवान महावीर को वंदनार्थ जाते हुए सुदर्शन ने मार्ग में अपने सामने मुद्गर लेकर आते क्रुद्ध अर्जुनमाली को देखा। वह वहीं नमस्कार महामंत्र के ध्यान में तन्मय हो गया। ध्यानस्थ सुदर्शन पर उसका आक्रमण निष्फल हो गया। उसकी सुदृढ़ प्रतिरोधक शक्ति के समक्ष अर्जुनमाली के शरीर में स्थित यक्ष भी क्षणभर * देखें परिशिष्ट १/१ लोगस्स और कायोत्सर्ग / ८७
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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