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________________ जब कायोत्सर्ग किया जाता है तब शांति के निमित्त होने के कारण परिपूर्ण लोगस्स गिना जाता है। लोगस्स का जो अभ्यस्त न हो उसकी सरलता सुविधा के लिए उसकी जगह रूपक के तौर पर नवकार से कायोत्सर्ग गिना जाता है। कायोत्सर्ग जब पूरा हो जाए तब कुछ विशेष उच्चारण के रूप में नमस्कार महामंत्र बोलकर कायोत्सर्ग पूरा किया जाता है। लोगस्स की आवृत्ति रूप ध्यान क्यों? इस पाठ का एकाग्रतापूर्वक चिंतन करने से दर्शन विशुद्धि होती है, यह आगम सम्मत्त तथ्य है। शरीर की चेष्टाओं को रोककर ही एकाग्रता स्थापित की जा सकती है। कायोत्सर्ग में शरीर की चेष्टाओं का निरोध कर दिया जाता है। इस बात पर ध्यान देने से कायोत्सर्ग में लोगस्स सूत्र के चिंतन का रहस्य समझ में आ जाता है क्योंकि समस्त क्रियाओं और ज्ञान आराधना के मूल रूप में दर्शन-विशुद्धि है। लोगस्स सूत्र के अर्थ का एकाग्रता से पुनरावर्तन करने पर सहज रूप से ध्यान हो जाता है। लोगस्स सूत्र या उसके अर्थ का चिंतन एकाग्रता पूर्वक करने से अशुभ चिंतन (योग) का निरोध और शुभ चिंतन का भाव प्रवाह बहता है अतः वह ध्यान रूप में परिणत हो जाता है। किसी सूत्र या अर्थ में दत्तचित्त होने के लिए उसकी आवृत्ति करना आवश्यक है। यही कारण है कि कायोत्सर्ग और ध्यान में लोगस्स सूत्र की आवृत्ति की जाती है। कई बार यह जिज्ञासा की जाती है कि क्या तीर्थंकर भगवान भी लोगस्स सूत्र का ध्यान करते थे? तीर्थंकर भगवान ध्यान में क्या करते थे, यह वर्णन कहीं नहीं देखा। यों तो किसी भी साधक के ध्यान का विवरण ग्रंथों में नहीं देखा किंतु वे ध्यान करते थे और आगमों में ध्यान की विधि का वर्णन स्वयं जिनेश्वर देव ने किया है। उस विधि से अन्य मुनि ध्यान करते हैं। श्रुत के आलंबन में धर्म ध्यान किया जाता है उसमें आवश्यक सूत्र भी पूर्व भव में अधीत हो सकता है, वे उस आवश्यक चतुर्विंशतिस्तव अथवा उत्कीर्तन का आलंबन ले तो कोई वैधानिक बाधा प्रतीत नहीं होती। क्योंकि तीर्थंकर भगवान सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार करते हैं और उत्कीर्तन सूत्र में सिद्ध हुए तीर्थंकरों का नाम उत्कीर्तन होता है। फिर यह सूत्र नमस्कार सूत्र नहीं है, गुण उत्कीर्तन सूत्र है। यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि तीर्थंकर भगवान छदमस्थ अवस्था में पूर्व भव में अधीत श्रुत* के वर्तमान चौबीसी में भगवान ऋषभ पूर्व भव में चौदह पूर्वो के ज्ञाता थे और शेष तेईस तीर्थंकरों ने पूर्व भव में ३२ आगमों का अध्ययन किया था। लोगस्स और कायोत्सर्ग / ८५
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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