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________________ तनावों तथा आवेगों के कारण पित्ताशय की पथरी बढ़ जाती है, धमनियों पर छाई चर्बी फूल जाती है। मानसिक आवेग जितना भी बढ़ता है एड्रनेलिन नामक हार्मोन उतनी ही अधिक मात्रा में रक्त में प्रवाहित होने लगता है। यह हार्मोन छोटी धमनियों को संकुचित करता है, हृदय की धमनियां भी इससे प्रभावित होती हैं, अगर वे बहुत ज्यादा संकुचित हो जाती हैं तो मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है। यदि इन मौलिक मनोवृत्तियों को वश में करने की कला हस्तगत हो जाये तो रक्तचाप संतुलित रहेगा, हृदय की धमनियां संकुचित नहीं होगी और अहं भाव को प्रबल आघात लगने पर भी क्षय, मधुमेह जैसे असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इन वृत्तियों को परिष्कृत करने की क्षमता मनुष्य में ही है, कहा भी है मनन करे चिंतन करे, मनुज उसी का नाम। आँख मूंद पीछे लगे, यह पशुओं का काम ॥ काम की वृत्ति का परिष्कार ब्रह्मचर्य में, भय का परिष्कार अभय में, युयुत्सा का परिष्कार सहिष्णुता में होता है। दसवैकालिक का सूत्र इसका संवादी सूत्र है उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे । मायं चज्जव भावेण, लोहो संतोसओ जिणे ॥२८ अर्थात् उपशम से क्रोध को, मृदुता से मान को, ऋजुता से माया को और संतोष से लोभ को जीतो। - इस प्रकार मानसिक ग्रंथियों का विश्लेषण कर उसके निरसन हेतु प्रतिपक्षी भावनाओं का प्रयोग भी मनोवैज्ञानिक है। मोहनीय कर्म के विपाक पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। आगमिक भाषा में इसे चेतना के जागरण की प्रक्रिया कहा जा सकता है। नमस्कार महामंत्र, चतुर्विंशति स्तव एवं आध्यात्मिक स्तुतियों के माध्यम से जब हम वीतराग आत्माओं की स्तुति करते हैं तो दर्शन की विशुद्धि होती है। दर्शन विशुद्धि से चित्त की निर्मलता प्रकट होने लगती है अर्थात् मोह कर्म की प्रकृतियों के विपाकोदय का उपशम भाव, क्षयोपशम भाव और क्षायिक भाव में परिवर्तित होना ही दर्शन विशुद्धि है। उपशम भाव-इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान दमन की प्रक्रिया कहता है। वासनाओं एवं कषायों को दबाकर चलने वाला साधक ११वें उपशांत मोह गुणस्थान तक पहुँचकर पुनः नीचे के गुणस्थानों में लौट जाता है। यह दमन की प्रक्रिया है। विलय की नहीं। क्षयोपशम भाव-इस पद्धति को मनोविज्ञान वृत्तियों का उदात्तीकरण कहता स्तुति और मनोविज्ञान / ५७
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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