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________________ मोहकर्म के उदय से कषाय की उत्पत्ति होती है जो वीतरागता का बाधक तत्त्व है। अतएव दर्शन विशुद्धि के लिए मोहकर्म की प्रकृतियों को समझना नितान्त अपेक्षित है। मोहनीय कर्म के मूलतः दो भेद हैं-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय। इन दो भेदों के उत्तर भेद २८ हैं उक्त भेद-प्रभेदों को समझने का सारांश यही है कि दर्शन मोहनीय कर्म के उदय से सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती और चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से चारित्र की प्राप्ति नहीं हो सकती। सम्यक्त्व अध्यात्म जीवन का प्राण है, उसके बिना चारित्र की प्राप्ति भी असंभव है। अनंतानुबंधी कषाय और दर्शन मोहनीय के रहते समकित, अप्रत्याख्यान कषाय के रहते श्रावक धर्स, प्रत्याख्यान कषाय के रहते संयतपना और संज्वलन कषाय के रहते यथाख्यात चारित्र (वीतरागता) की प्राप्ति नहीं हो सकती।२४ कषाय की उत्पत्ति का मूल हेतु जानकर आत्म स्वभाव में स्थिर होने के लिए कषाय मुक्ति की साधना अपेक्षित है। आत्मा अपने स्वभाव में स्वयं परिपूर्ण है लेकिन कुछ विकारों के कारण यह विभाव दशा को प्राप्त है। मनोविज्ञान ने मूल प्रवृत्तियां और चौदह प्रकार के संवेगों का उल्लेख किया है जो जैन दर्शन में उल्लेखित मोह कर्म की प्रवृत्तियों से ही मिलता-जुलता है जिनको निम्न चार्ट के माध्यम से समझा जा सकता हैमूल प्रवृत्तियां मूल सवेग मोहनीय कर्म मूल सवेग के विपाक १. पलायन वृत्ति - भय १. भय २. संघर्ष वृत्ति - क्रोध २. क्रोध क्रोध ३. जिज्ञासा वृत्ति - कुतुहल भाव ३. जुगुप्सा जुगुप्सा भाव ४. आहारान्वेषण वृत्ति- भूख ४. स्त्रीवेद कामुकता ५. पित्रीय वृत्ति - वात्सल्य सुकुमार भावना ५. पुरुष वेद कामुकता ६. यूथ वृत्ति - एकाकीपन तथा सामूहिक भाव ६. नपुसंक वेद कामुकता ७. विकर्ष वृत्ति - जुगुप्सा भाव ७. अभिमान स्वागृहभाव, ८. काम वृत्ति - कामुकता ६. स्वागृह वृत्ति - स्वागृह भाव, उत्कर्ष भाव ८. लोभ स्वामित्व भाव १०. आत्म लघुता वृत्ति- हीन भाव अधिकार भाव ११. उपार्जन वृत्ति - स्वामित्व भाव ६. रति उल्लसित भाव १२. रचना वृत्ति - सृजन भाव १०. अरति दुःख भाव १४. हास्य वृत्ति - उल्लसित भाव उपरोक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि आहार की खोज, काम तृप्ति, पलायन और युयुत्सा (लड़ने झगड़ने की ईच्छा)-ये मौलिक मनोवृत्तियां हैं। इनकी तीव्र आकांक्षा तनाव को जन्म देती है। जेम्स कानिक ने लिखा है-मानसिक ५६ / लोगस्स-एक साधना-१ भय
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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