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________________ उपरोक्त तथ्य इसी रहस्य को अनावृत्त करते हैं कि महापुरुष कष्टों में भी गुलाब की भांति हंसते हैं, लोकोत्तर सृष्टि का सृजन करते हैं। पुरिसवर गंधहत्थीणं-(पुरुषों में प्रवर गंध-हस्ती) गंध-हस्ति वीरता और महक दोनों का स्वामी कहलाता है। कहा जाता है-पांच सौ हाथी हैं, बड़े शक्तिशाली। यदि गंध-हस्ति आ जाये तो वे पांच सौ हाथी बकरी बन जाएं उसकी गंध मात्र से। उसकी गंध के परमाणु इतने शक्तिशाली हैं कि पांच सौ शक्तिशाली हाथी निर्वीय और बकरी जैसे बन जाते हैं, अपना मुँह नीचा कर लेते हैं। उनकी लड़ने की ताकत समाप्त हो जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिस वन प्रदेश में गंधहस्ति रहता है वहाँ महामारी आदि का प्रकोप नहीं होता। तीर्थंकरों को पुरुषों में प्रवर गंधहस्ती की उपमा प्राप्त है इसका कारण है कि वे असीम बल व अनंत-गुणों के निधान होते हैं। संसार में उनका पदार्पण होते ही मिथ्यात्वियों का जोर समाप्त हो जाता है। इनके अतिशय के प्रभाव के कारण वे जहाँ-जहाँ प्रवचन करते हैं, वहाँ से बारह योजन (४८ कोस) की दूरी तक अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी आदि प्राकृतिक प्रकोप नहीं होते हैं। लोगुत्तमाणं-(लोकोत्तम) अर्हत् तीनों लोक में श्रेष्ठ रत्न है। सुर, नर, किन्नर, कोई भी उनकी बराबरी नहीं कर सकता। उनके ऐश्वर्य के आगे हजारों-हजारों देवों और इन्द्रों का ऐश्वर्य भी नगण्य है। जयाचार्य ने अर्हत मल्लि की स्तुति करते हुए कहा-प्रभो! तुम्हारे शरीर में कल्पवृक्ष की पुष्प माला जैसी सुगंध फूट रही है। देवांगणाओं के नयन रूपी झूमर उसके प्रति आकर्षित हो झूम रहे हैं।१३ यहाँ ‘लोगुत्तमाण' शब्द का अर्थ लोकोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित है। लौकिक और लोकोत्तर मंगल वत् लोकोत्तम को भी दो रूपों में व्याख्यायित किया जा सकता है१. द्रव्य लोकोत्तम २. भाव लोकोत्तम व्यवहार नय चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि विशिष्ट पुरुषों को लोकोत्तम मानता है-ये द्रव्य लोकोत्तम हैं। व्यवहार के क्षेत्र में द्रव्य का भी महत्त्व है पर निश्चय नय की दृष्टि में भाव को जो महत्त्व प्राप्त है वह द्रव्य को नहीं मिल सकता। भाव लोकोत्तम चार हैं-अरिहंत, सिद्ध, साधु, केवली भाषित धर्म। अरिहंत सर्वोपरि श्लाका पुरुष है। उनके संहनन, रूप, संस्थान, वर्ण, गति, सत्त्व, सार, उच्छ्वास-ये सभी अनुत्तर होते हैं। इनका मूल आधार है-शुभ नाम कर्म ४० / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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