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________________ होने के कारण लक्ष्मी को भी पद्मासना कहा है । इधर अध्यात्म चरमोत्कष पर स्थित तीर्थंकर कमलासन पर ही आसीन होते हैं । उनके चरण जहाँ टिकते हैं वहाँ कमल खिल उठते हैं। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि तीर्थंकर देव निर्मित एक हजार पंखुड़ी वाले सुवर्ण कमल पर पदन्यास करते हुए विचरण करते हैं । तीर्थंकरों के इस अतिशय का विवेचन आचार्य मानतुंग ने भी किया है उन्निद्र हेम नवपङ्कपुञ्जकांति, पर्युल्लसन्नखमयूख शिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत् पद्मानि तत्र बिबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ आचार्य कहते हैं भगवान के चरण स्वयं बड़े ही सुन्दर हैं । उनके चरणों के नख खिले हुए नवीन सुवर्ण-कमलों के समूह की कांति के समान चमकदार होते हैं। भगवान के चरणों के नखों में एक अपूर्व आभा होती है । यह भगवान का एक अतिशय भी है। सभी तीर्थंकरों के यह अतिशय होता है । यह अतिशय तीर्थंकरों के पूर्व जन्म की तपस्या का फल है । उस महातपस्या के फलस्वरूप सब प्रकार की कामनाओं से रहित होने पर भी यह वैभव भगवान के चरणों में लौटता है। ऐसे तीर्थंकर देव को हमारा बार-बार नमस्कार हो । दिगम्बर शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि तीर्थंकर देव जब समवसरण में विराजमान होते हैं तब मंदार, सुन्दर, नमेरु, पारिजात और स्नातक आदि दिव्य वृक्षों के फूलों के समान अचित पुष्पों की वर्षा होती है । सुगंधित गंधोदक की वृष्टि होती है। शीतल, मंद और सुगंधित पवन चलती है । ऐस सुन्दर, सुखद और प्रसन्न वातावरण में भगवान की दिव्य ध्वनि होती है । देव जिन पुष्पों की वृष्टि करते हैं उन पुष्पों का वर्ण एकदम निर्मल और धवल होता है। शरद ऋतु के चन्द्रमा के समान सफेद रंग शुक्ल ध्यान और शुक्ल लेश्या का प्रतीक है । इतिहास का सर्वे करने से ऐसा अनुमान लगता है कि महापुरुषों की जीवनगाथा के साथ पुष्पों की सृष्टि भी निर्मित है, सृजन की प्रतीक है", यथातीर्थंकर के चरणों में पद्मों की सृष्टि (अचित पुष्पों की वृष्टि) भगवान बुद्ध जन्मते ही सात कदम चले, वहां महकते पुष्पों का निर्माण होना। • - ऐसी • चावल की भांति गुलाब भी पैगम्बर मोहम्मद के पसीने से पैदा हुआ-1 तुर्की की किंवदन्ति है । ईसा मसीह को सुली पर चढ़ाया गया। उनके हाथों एवं पावों में कीले ठोकी गई। उस समय जहाँ-जहाँ पर खून टपक कर गिरा वहाँ-वहाँ सुन्दर गुलाब पैदा हुए। • शक्र स्तुति : स्वरूप मीमांसा / ३६
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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