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________________ पाठ अर्थ सिव कल्याणकारी मयल अचल मरुय अरुज मणंत अनंत मक्खय अक्षय मव्वाबाह अव्याबाध मपुणरावित्ति पुनरावृत्ति से रहित सिद्धिगइनाम धेयं सिद्धिगति नामक ठाणं स्थान को संपताणं प्राप्त नमो नमस्कार हो जिणाणं जिनेश्वर जियभयाणं भय विजेता को। शक्र-स्तुति में प्रथम शब्द 'नमोत्थुणं' नमस्कार का सूचक है। शेष अन्य पद ये बताते हैं कि नमस्कार किसको? मैं जिन्हें नमस्कार करूं उनका स्वरूप क्या है? शक्र स्तुति में समागत निम्नोक्त प्रमुख गुण “नमोत्थुणं" - "सक्कत्थुई" की ऐसी निजी विरल विशेषताएं हैं जो अन्य सूत्रों में नहीं हैं। ___ अरहंताणं-जिन्होंने अपने कर्म, कषाय व विकार जो आत्मगुणों की हानि करने वाले राग-द्वेष रूपी लुटेरे हैं, उन पर विजय प्राप्त कर ली हैं और अन्तर दोषों को समूल नष्ट कर दिया हैं वे अरिहंत कहलाते हैं। भगवंताणं-'भगवान्' शब्द श्रद्धा और विश्वास का सूचक है। आचार्य हरिभद्रानुसार ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को भग कहते है, जो भग युक्त हैं वह भगवान कहलाने का अधिकारी है।' पूर्ण ऐश्वर्य, पूर्ण ज्ञान, पूर्ण यश, पूर्ण श्री, पूर्ण धर्म एवं पूर्ण वैराग्य-इन छह पूर्णताओं से पूर्ण होने के कारण अहँतों को 'भगवंताणं' शब्द से संबोधा गया है। आइगराणं-स्वानुभूति के बल पर अर्हत् धर्म का स्वतंत्र प्रतिपादन करते हैं अतः वे आदिकर, धर्म के आदिकर्ता कहे जाते हैं। यद्यपि धर्म प्रवाह रूप से अनादि और शाश्वत है। धर्म के व्यवहारिक रूप की अपेक्षा धर्म शासन की आदि मानी गई है। जैसे भगवान महावीर ने पार्श्व प्रभु के चातुर्याम संवर धर्म के स्थान पर पंच महाव्रत रूप धर्म की स्थापना की। तित्थयराणं-(तीर्थंकर) तीर्थंकर शब्द का अर्थ है तीर्थ के कर्ता । यहाँ तीर्थ ३६ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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