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________________ १३. नाम स्मरण की महत्ता चौबीस तीर्थकरों के नाम वीतरागता से युक्त होने के कारण मंत्राक्षर रूप हैं। मंत्र जप से जीभ पर अमृत का स्राव होता है। शरीर तेजस्वी, शीतल और कांतिमय बनता है। मन निर्विकार अवस्था को प्राप्त होता हैं। दीर्घकाल तक नियमित मंत्र जप और सतत उसके स्मरण से जागरूक चेतना का विकास होता है तथा आनंद की उपलब्धि होती है। प्रभु के नाम, गुण, कीर्तन से भक्त सिद्धि व संसार मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। पुण्य की प्रतिष्ठा उसकी मधुर महक में, सरोवर की प्रतिष्ठा उसके निर्मल जल में और चंदन की प्रतिष्ठा उसकी पावन सुरभि में सन्निहित रहती है, उसी प्रकार मनुष्य की प्रतिष्ठा उसके शील और चारित्रिक गुणों में सन्निहित रहती है। आत्मा की अनंत चारित्रिक शक्तियों को उजागर करने की भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है । वैज्ञानिक जिसे ट्रांसमीटर के द्वारा जानते हैं एक योगी उसे ट्रांस ( आत्मसाक्षात्कार) के द्वारा जानता है । जिस प्रकार विज्ञान के सूत्र बताने वाले को वैज्ञानिक कहते हैं उसी प्रकार धर्म के सूत्र बताने वाले को जैन परम्परा में तीर्थंकर नाम से पहचाना जाता है। धर्म की सम्पूर्ण पद्धति को वे अलग-अलग सूत्रों में विश्व के सामने प्रकाशित करते हैं। आत्मा के भीतर की खोज होने के कारण उनकी खोज विज्ञान की शक्ति और मर्यादा से परे है। अध्यात्म की भाषा में आत्मा ही कामधेनु और आत्मा ही नंदनवन है। आत्म साक्षात्कार से ही परमात्मपद की प्राप्ति संभव है । इस चरम और सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि के अनेकानेक मार्गों में एक अत्यन्त सरल और सुगम मार्ग है- अर्हत् स्तुति। स्तुति के दो रूप सामान्यतः अर्हत् स्तुति के दो रूप उपलब्ध हैं १. बाह्य वैभव की स्तुति २. आन्तरिक वैभव की स्तुति नाम स्मरण की महत्ता / १५६
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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