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________________ १३. वृहत्कल्प भाष्य - २०२, २०३ १४. आचारांग, अध्ययन ४ / १२६, सूत्रकृतांग २-१-१५, २-२-४१ १५. बोध पाहुड़ - ३० पंचाध्यायी - २ / ६०७ १६. १७. धम्मपद - अरहंतो वग्गो ६० धम्मपद - अरहंतो वग्गो ६२ १८. १६. २०. ५१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. ] उधृत तुलसीप्रज्ञा जनवरी-मार्च ( ) पृ. ४३ वही/पृ.368 नदी - पृ. २/ ३२, भगवती ८-२ आवश्यक नियुक्ति गाथा - ६२१६२२ - भगवती भाष्य से उधृत वही - ६२१-६२२ - भगवती भाष्य से उधृत णमोक्कार बाल शिक्षा भाग - ३ पृ./ १२३, दिगम्बर ग्रंथ सद्द्बोध मार्तण्ड, पृ. / २६६ भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर खण्ड २ / पृ. ५५१ वही - ५-७ वही - ६-३३ ] आचरांग - २/१५, ३८, ज्ञाता ८ भगवती - ५-४ तथा ८-१० . तुलसी प्रज्ञा से उधृत पृ. ४४ जनवरी-मार्च ( ) २६. वही - १४-१० ३०. नियमसार - भा. १५६ - आर्हती दृष्टि, पृ. ३११ से उधृत ३१. आर्हती दृष्टि पृ/ ३११ से उधृत, वृहत्कल्प भाष्य, पीठिका, गाथा/ ३८ ३२. वही - पृ. ३११ ३३. ठाणं / ६१६, स्थानांगवृत्ति, पत्र २८० ३४. ३५. १५८ / लोगस्स - एक साधना - १ भद्रबाहु कृत आवश्यक निर्युक्ति खण्ड १, पृ./१७० ज्ञाता सूत्र - अध्ययन ८ प्रवचन सारोद्धार, द्वार १० - गाथा ३१० / ३१६ महापुराण एवं तत्वार्थ सूत्र में तीर्थंकर होने में सोलह भावनात्मक स्थान बतलाए हैं। उन सोलह स्थानों में बीस स्थानों का समावेश हो जाता है। दोनों जगह भाव क्रिया को प्रधानता दी गई है। ३६. भीतर का रोग भीतर का इलाज, खण्ड २, मनोचेतसिक चिकित्सा - पृ./१२४
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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