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________________ दोषों तथा कर्मों का नाश कर दिया है और जो ज्ञानमय हो गये हैं, वे अरिहंत हैं। अरहंत की इन विशेषताओं को पंचाध्यायी में इस प्रकार कहा गया है दिव्यौदारिकदेहस्या धौतपातिचतुष्टयः । ज्ञान दृग्वीर्य सौख्यायः सौऽर्हन धर्मोपदेशकः ॥ बौद्ध वाङ्मय में भी अरहंत शब्द महात्मा बुद्ध के लिए प्रयुक्त प्रयोग है। अरहंत के जो गुण पाली साहित्य में कहे गये हैं वे बहुत अंशों में जैन अरहंत के गुणों से समानता रखते हैं। पाली भाषा में बौद्ध आगम 'धम्म पद' (त्रिपिटक) में 'अरहंत वग्गो' नामक एक प्रकरण है, इसमें दस गाथाओं में अरहंत का वर्णन किया गया है। धम्मपद के अनुसार अरहंत वह होता है जिसने अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर ली है, जो शोक रहित है, जो संसार से मुक्त है, जिसने सब प्रकार से परिग्रह को छोड़ दिया है और जो कष्ट से रहित है। गतद्धिनो विसोकस्स विप्पमुत्तस्स सबधि। सव्वगथपहीनस्स परिलाहो न विजन्ति ॥१७ ऐसा अरहंत जहाँ कहीं भी विहार करता है वह भूमि रमणीय (पवित्र) है यस्यारहन्तो विहरन्ति तं भूमिं रमणेभ्यकः। आवश्यक सूत्र में अरहंत के तीन अर्थ किये हैं१. पूजा की अर्हता होने के कारण अरहंत। ६ २. अरि का हनन करने के कारण अरिहंत। ३. रज कम का हनन करने के कारण अरिहंत।२०० जैन धर्म में पांच अवस्थाओं से संपन्न आत्मा सर्वोत्कृष्ट एवं पूज्य मानी गई है, उनमें अरिहंत सर्वप्रथम है। अरिहंत किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं, वह तो आध्यात्मिक गुणों के विकास से प्राप्त होने वाला महान मंगलमय पद है। इसी कारण अनादि निधान मंत्र में उन्हें सर्वप्रथम नमस्कार किया गया है-णमो अरहंताण, णमो सिद्धाणं...। सिद्धो के स्वरूप का अनुभव अरिहंत ही करते हैं और वे ही संसार के भव्य प्राणियों को सिद्धों की पहचान कराते हैं इसलिए सिद्धों से पूर्व उन्हें नमस्कार किया गया है। जैन दर्शनानुसार अरहंत परमात्मा आत्म-स्वरूप को उपलब्ध, राग-द्वेष से मुक्त किंतु आंशिक कर्म (भवोपग्राही कम) युक्त एवं देहधारी होते हैं। चार घनघाती रूप कर्म शत्रुओं का क्षय करने के कारण तीर्थंकर अरिहंत कहलाते हैं। वे एक साधारण मनुष्य की तरह जन्म लेते हैं, साधारण मनुष्य की तरह जीते हैं। यथावर १४८ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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