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________________ रूप रत्नत्रयी के उपदेष्टा हैं। इस रत्नत्रयी पर चलने वाले भव्य जीवों की ही मुक्ति संभव है। अतः ‘लोगस्स उज्जोयगरे' अर्हतों के लिए यह विशेषण अपनी सार्थकता रखता है। संदर्भ १. तीर्थंकर चरित्र भाग १, पृ./५३ २. भक्तामर-श्लोक ६ ३. ठाणं-४, सूत्र ४३६ ४. पर्युषण साधना-पृ./८१ आचारांग-१.३.२ ६. उत्तराध्ययन-३/७ . ७. भगवती-१३/५३, जैन सिद्धान्त दीपिका आचारांग-१.३.४. सूत्र ६७ ६. उत्तराध्ययन-७ १०. K.V. Mardia: The Scientific Foundations of Jainism. P.92-93-शक्ति शांति का स्रोत णमोक्कार महामंत्र, पृ./११० से उद्धृत ११. जैन सिद्धान्त दीपिका-१/६ १२. ठाणं-१०/१ १३. अंगसुत्ताणि २ (भगवई) ११/६१ १४. उत्तराध्ययन-३६/३४ १५. वही. . १६. भगवती शतक २, उद्देशा १ स्कन्ध प्रश्न १७. लोगस्स एक दिव्य साधना १८. अष्टणाहुइ-दर्शन पाहुड़, पृ./35, 36 १६. भगवती-11/9 २०. आयारो-४/१४ और लोगस एक धर्मचक्र-१ / १३६
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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