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________________ बंधाने के कारण भगवान ऋषभ को बारह माह तक आहार-पानी नहीं मिला। ५०० किसान और १००० बैलों को खाने में विलम्ब करने के कारण ढंढण मुनि को अपनी लब्धि की भिक्षा नहीं मिली। पूर्व भव में मुनि पर कलंक लगाने से सीता के शील पर कलंक आया। पूर्व भव में मत्स्य का पंख काटने से दामनक की अंगुली कटी। सुभट के दो पर काटने से कलावती रानी के दो हाथ कटे। बाहुबली ने पूर्व भव में ५०० मुनियों की अग्लान भाव से सेवा की परिणाम स्वरूप इस भव में भरत चक्रवर्ती से भी अधिक शक्तिशाली बने। राजा कुमारपाल ने संघभक्ति से गणधर जैसे महान पद का बंध किया। वे आगामी चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर पद्मनाभ के ग्यारहवें गणधर बनेगें। इस प्रकार कर्म के शुभ-अशुभ स्वरूप का चिंतन करता हुआ व्यक्ति यह चिंतन करता है-“लोक में यह आत्मा अनंत-अनंत बार जन्म-मरण कर चुका है। कभी नरक में, कभी निगोद में तो कभी स्वर्ग की उच्चतम भूमिका तक चला गया है लेकिन जब तक आत्म-स्वरूप की पहचान नहीं होगी तब तक यह भ्रमण ही करता रहेगा। इस अनंत लोक यात्रा का अन्त नहीं आयेगा। __ यह लोक श्रद्धा अथवा लोक स्वरूप का विश्वास और चिंतन आत्मा को वैराग्य और निर्वेद की तरफ ले जाता है। लोक की विचित्र स्थितियों का अवलोकन एवं मनन करने से हमारा मन धर्म एवं जिन वाणी के प्रति श्रद्धाशील बनता है तथा जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाने की खोज करता है। लोक भावना अनादिकालीन लोक यात्रा का अन्त खोजने की कुंजी है। लोक का स्वरूप समझकर भव भ्रमण से मुक्त होने का प्रयत्न करें यही इसे समझने का सार है। यह धर्म ध्यान का ही एक प्रकार है। शिव राजऋषि ने लोक-स्वरूप भावना का चिंतन करते-करते वैराग्य प्राप्त किया था। भगवान महावीर ध्यानस्थ हो तीनों लोक का चिंतन करते थे। लोक स्वरूप भावना की अनुप्रेक्षा करते थे। लोक स्वरूप का चिंतन करना संस्थान विचय धर्मध्यान है। लोक भावना की फलश्रुतियां १. तत्त्व ज्ञान की विशुद्धि। २. मन का अन्य बाह्य विषयों से हटकर आत्म-केन्द्रित होना। ३. मानसिक स्थिरता द्वारा अनायास ही आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होना। ४. मोहकर्म का उपशम, क्षयोपशम अथवा क्षय होना। निष्कर्ष अर्हत् सम्पूर्ण लोक के रहस्यों को केवलज्ञान रूपी प्रकाश से प्रकट करते हैं जो हमारी बोधि, समाधि और सिद्धि में सहायक बनते हैं। मैं कौन हूँ? कहाँ हूँ-इसका बोध भी अर्हत् की शरण स्वीकार करने से ही होता है। अर्हत् मोक्ष मार्ग १३८ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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