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________________ प्रकाश करते हैं। सृष्टि जगत् में सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र आदि प्रकाशपिण्ड हैं। २. आत्म परिणामी प्रकाश सीमातीत होता है, सर्वत्र होता है। सूर्य सीमित क्षेत्र को प्रकाशित करता है। परन्तु तीर्थंकर भगवन्त अपने केवलज्ञान रूप सूर्य से सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं क्योंकि केवलज्ञान का विषय है-सर्वद्रव्य, सर्वक्षेत्र, सर्वकाल और सर्वभाव। उपरोक्त विवेचन के पश्चात तीर्थंकरों को ‘लोगस्स उज्जोयगरे' कहने का कारण सुगमता से समझा जा सकता है। तीर्थंकरों के पंच कल्याणक के समय स्वर्गीय देव महोत्सव मनाते हैं। इन कल्याणकों के समय सम्पूर्ण लोक में द्रव्य प्रकाश के साथ-साथ सर्वत्र आनंद की लहर दौड़ती है। इसलिए कहा है-"नरकाऽपि मोदन्ते यस्य कल्याण पर्वसु"। ज्ञाता सूत्र के अनुसार च्यवन कल्याणक के समय पक्षी विजय सूचक शब्द उच्चारते हैं। सुरभियुक्त शीतल मंद पवन भी प्रदक्षिणावर्त्त होकर बहता हुआ भूमि का स्पर्श करता है। सम्पूर्ण पृथ्वी शस्य से आच्छादित एवं हरी-भरी रहती हैं। जनपद पुलकित होता है। जहाँ शाश्वत अंधकार है, सूर्य आदि का प्रकाश नहीं पहुँचता है उन नरक भूमियों में भी दो घड़ी (४८ मिनट) के लिए प्रकाश हो जाता है। इतने समय के लिए नैरयिक भी आनंद की अनुभूति करते हैं। वहाँ के परमाधार्मिक देव भी नारकीय जीवों को यातना नहीं देते। सब दिशाएं झंझावत रजकण आदि से रहित होकर निर्मल हो जाती हैं। चौदह रज्जू प्रमाण सम्पूर्ण लोक में प्रकाश प्रथम नरक में सूर्य जैसा प्रकाश दूसरी नरक में मेघाच्छादित सूर्य जैसा प्रकाश तीसरी नरक में पूर्ण चाँद जैसा प्रकाश चौथी नरक में मेघाच्छादित चाँद जैसा प्रकाश पांचवीं नरक में ग्रह जैसा प्रकाश छठी नरक में नक्षत्र जैसा प्रकाश सातवीं नरक में तारक जैसा प्रकाश तीर्थंकर अध्यात्म जगत् के दिव्य सूर्य हैं। जब वे अध्यात्म साधना के उत्कर्ष रूप केवलज्ञान व केवलदर्शन को प्राप्त कर अपना अलौकिक प्रकाश यत्र-तत्र बिखेरते हैं तब भव्य जीवों के मिथ्यात्व व अज्ञान रूप अंधकार का निवारण होता है। इस प्रकार तीर्थंकरों के भाव प्रकाश से भव्य जीवों को जो प्रकाश की किरणें मिलती हैं उसके प्रमुख रूप में पांच प्रकार हैं १२८ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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