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________________ पुद्गलों को तीसरे समय में निकालता है। इस प्रकार प्रथम समय में सिर्फ ग्रहण होता है और बीच के समयों में ग्रहण और निसर्ग दोनों होते हैं। अंतिम समय में सिर्फ निसर्ग होता है, जैसे नि नि नि नि नि ग्र ग्र ग्र ग्र ग्र ग्र ग्र 1 इनमें जो अन्तर है उसे ही कंपन रूप में हम अनुभूत करते हैं । रेडियो आदि इसी पद्धति की विज्ञान आविष्कृत और यांत्रिक योजना है। निस्संदेह पुद्गल में अनंत शक्ति है । एक परमाणु यदि तीव्र गति से प्रकंपन करे तो काल के सबसे छोटे अंश अर्थात् एक समय में लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँच सकता है। यहाँ बैठे-बैठे हम अमेरिका, रूस आदि विदेशों के समाचार सुन लेते हैं इसका कारण ध्वनि (शब्द) के पुद्गलों की गति है । यंत्र तो मात्र ध्वनि के पुद्गलों को व्यवस्थित रूप से पकड़ने का काम करते हैं । नि ० ध्वनि की वैज्ञानिकता लोगस्स के संदर्भ में चुंबक ऐसा प्राकृतिक पत्थर या पदार्थ है जिसे क्षैतिक समतल में निर्बाध घूर्णन की स्वतंत्रता देकर लटका दिया जाये तो वह स्थिरता की स्थिति में आने पर अपने दोनों सिरों से निश्चित दिशाओं (उत्तर-दक्षिण) को सूचित करता है । उत्तर दिशामुख सिरा उत्तरी ध्रुव और दक्षिण दिशामुख सिरा दक्षिणी ध्रुव कहलाता है । साहित्य में चुंबक शक्ति का आकर्षण शक्ति के प्रतीक के रूप में प्रयोग होता है। चुंबक के आस-पास चतुर्दिक उसकी बाल - रेखाओं का जाल - सा बिछ जाता है। इस क्षेत्र को चुंबक का प्रभाव क्षेत्र या चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं । जप, स्तवन आदि के द्वारा भी हमारी प्राण ऊर्जा जहाँ अधिक सक्रिय होती है, जिस चेतना केन्द्र को प्रभावित करती है, वह स्थान विद्युत चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है । अर्थात् वहाँ चेतना के प्रदेश अधिक सक्रिय हो जाते हैं। वहाँ से आत्मा के प्रकाश की किरणें अनावृत्त होने लगती हैं। उपरोक्त वैज्ञानिक और आध्यात्मिक सिद्धान्तों को हम लोगस्स के जप, ध्यान, कायोत्सर्ग अथवा स्तुति के संदर्भ में समझें । जब हम एक आसन में स्थिर होकर लोगस्स का संपूर्ण पाठ, एक पद्य, एक चरण अथवा एक शब्द मौन अवस्था में तन्मय होकर उच्चरित करते हैं अथवा तेज आवाज़ में लयबद्ध उच्चरित करते हैं और उनमें भावना संयोजित कर तन्मय हो जाते हैं तब तीव्र गति से ध्वनि तरंगें उठने लगती हैं। भावना संपृक्त ध्वनि तरंगें, आध्यात्मिक शक्ति और अत्यन्त तीव्र गति से लोगस्स पर केन्द्रित होकर घूर्णन ( प्रकंपन) करने लगती हैं। उससे ऊर्जा १०६ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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