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________________ विश्लेषण प्राप्त होता है उसे युक्तियुक्त और विज्ञान सम्मत कहने में कोई कठिनाई नहीं है । ध्वनि की वैज्ञानिकता जीव, अजीव और मिश्र - इन तीनों प्रकार की ध्वनियों पर विज्ञान का अनुसंधान कार्य चल रहा है। पुद्गल की पर्याय होने से ध्वनि में स्पर्श, रस, गंध और वर्ण- ये चारों होते हैं तथा तरंगें भी होती हैं । इन सबकी सत्ता विज्ञान स्वीकार कर चुका है। रेडियों, टेलीफोन आदि दूर संचार साधन ध्वनि तरंगों के कारण ही संभव हो सके हैं। मौन ध्वनि से भी अत्यधिक शक्तिशाली स्फोट होता है और भावनायुक्त ध्वनि में चुंबकीय लहरें उत्पन्न होती हैं जो ध्वनि तरंगों को अधिक शक्ति-संपन्न और भेदक शक्ति युक्त बनाती हैं। इन तीव्रतम प्रकंपनों से असंभव सी लगने वाली घटनाएं भी घटित हो जाती हैं । सामान्यतया ध्वनि प्रकंपन ३२ से ६६ तक प्रति सैकण्ड होते हैं । लेकिन जब ये प्रकंपन प्रति सैकण्ड खरबों की संख्या तक पहुँच जाते हैं तब उनसे प्रकाश उत्सर्जित होने लगता है और ये एक ही बिंदु पर स्थिर होकर घूर्णन orbicular whirling करें तो तीव्रतम प्रकाश फैल जाता है । सन् १६६५ में सौरमंडल में एक घटना घटित हुई । उसका संक्षिप्त परिचय एक लेख के रूप में प्रकाशित हुआ जिसका सार यह है कि ब्लैक हॉल (Nabulai नेबुली - अंधकार से भरे पुद्गल) पिण्ड में नाभिकीय संयोजन (Neuclear fusion न्यूक्लियर फ्यूजन होने लगे (जो किसी केन्द्रिय बिंदु - स्कन्ध के अति तीव्र से घूर्णन करने के कारण होता है) तो वह अपनी ऊर्जा से चमकने लगता है । इसे वैज्ञानिकों ने नये तारे का जन्म कहा है। इसी तथ्य को पन्नवणा' में बहुत अच्छे ढंग से समझाया गया है । जीव पहले भाषा द्रव्यों को ग्रहण करता है । तत्पश्चात वह उस भाषा को बोलता है अर्थात् ग्रहीत भाषा द्रव्यों का त्याग करता है । जीव काययोग से भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है तथा वाचिक योग से उन्हें निकालता है। जिन-जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, उन्हें सानन्तर (बीच में कुछ का व्यवधान डालकर अथवा रूककर ) भी ग्रहण करता है । अगर जीवभाषा द्रव्यों को सानन्तर ग्रहण करें तो जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात समयों का अन्तर करके ग्रहण करता है । यदि कोई लगातार बोलता रहे तो उसकी अपेक्षा से जघन्य एक समय का अन्तर समझना चाहिए। जैसे कोई वक्ता प्रथम समय में भाषा के जिन पुद्गलों को ग्रहण करता है, दूसरे समय में उनको निकालता है तथा दूसरे समय में ग्रहीत लोगस्स के संदर्भ में ध्वनि की वैज्ञानिकता / १०५
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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