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________________ उच्चार्यत्वायदेकर स्थाने तालु-रदादिके। सादृश्यं व्यंजनस्यैव श्रुत्यनुप्रास उच्यते ॥ एक ही स्थान में उच्चरित वर्गों के प्रयोग से नाद-सौन्दर्य (श्रुति-सुखदता) का संवर्धन होता है एष सहृदययानामतीव श्रुतिसुरवावहत्वाच्छुत्यनुप्रासः।" . लोगस्स में श्रुत्यानुप्रास का नाद सौन्दर्य अनेक स्थलों पर विद्यमान है लोगस्स उज्जोयगरे, धम्मतित्ययरे जिणे। अरहंते कित्तइस्सं, चउविसंपि केवली ॥ उपरोक्त पद्य में लोगस्स में स् स्, धम्म तित्थयरे में ध, त्, त्, थ, अरहते में न त् कित्तइस्सं में त् त् स् स् आदि एक स्थानीय वर्गों के संयोजन के श्रुत्यानुप्रास अलंकार है। इन सबका उच्चारण स्थान दंत है। ___ इसी पद्य में तालव्य वर्गों के संयोग की भी आवृत्तियां हैं-उज्जोयगरे में ज् ज् य इसके अलावा च् ज् य इ-ये सारे एक स्थानीय वर्ण होने से श्रुत्यानुप्रास अलंकार है। इस प्रकार पूरे लोगस्स में एक स्थानीय वर्णों की कई आवृत्तियां हैं तथा एक-एक पद्य में भी अनेक एक स्थानीय वर्गों का संयोग भी श्रुत्यानुप्रास अलंकार में हुआ है। जिससे श्रुति सुखदता बढ़ती है। इस प्रकार लोगस्स की देह संरचना में सभी बीजाक्षरों, मातृका वर्णों आदि के उचित, आलंकारिक एवं प्रभावी समन्वय से इसका वर्ण संयोजन अनूठा और अचिन्त्य शक्तिमय बन जाता है। लोगस्स देह संरचना एक रहस्य यह एक अत्यन्त गंभीर और अनेक उत्तम गुणों से आप्लावित महामंत्र है। जैसे सागर गर्भ में अनेक रहस्य आवृत्त रहते हैं, गहराई में रहते हैं। उसी प्रकार इस स्तव में अनेक शक्तियां अन्तर्निहित हैं। शुद्ध उच्चारण, अर्थबोध के साथ भावपूर्ण तन्मयता से शनैः-शनैः वे रहस्य स्वयमेव उजागर एवं अनावृत्त होने लगते हैं। बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि सोने से पूर्व चार बार अथवा सात बार लोगस्स का पाठ बोलने से अच्छी नींद आती है, अनिद्रा रोग का निवारण होता है, नींद में दुःस्वप्न नहीं आते, भय नहीं लगता, मोह कर्म की तीव्रता का अल्पीकरण होता है। जैन धर्म के साधना सूत्र में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अपनी अनुभव पूर्ण लेखनी में लिखा है- “वि.सं. २०३५, गंगाशहर चातुर्मास, संवत्सरी का दिन। मैं एकान्त में प्रतिक्रमण कर रहा था। मैंने श्वास के साथ चालीस लोगस्स का ध्यान किया। समय तो लगा किंतु इतना अच्छा ध्यान हुआ कि शायद मेरे लिए वह लोगस्स देह संरचना के रहस्य / ६५
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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