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________________ ر کر १. वर्ग संयोग-वर्ग के प्रथम वर्ण का द्वितीय को साथ, तृतीय का चतुर्थ के । साथ संयोजक ओज व्यंजक माना गया है। लोगस्स में उदाहरण स्वरूप द्रष्टव्य हैं तित्थयरे में-त् थ् (प्रथम+द्वितीय) रिट्ठनेमिं में-ट् ठ् (प्रथम+द्वितीय) तित्थयरा में-त् थ (प्रथम द्वितीय) पुण्फदंतं में-प् फ् (प्रथम द्वितीय) वद्धमाणं में-द्ध (तृतीय+चतुथ) सिद्धा में-द् ध् (तृतीय+चतुर्थ) सिद्धिं में-द् ध् (तृतीय+चतुथ) आदि। ३. द्विरुक्त वर्ण द्विरुक्त वर्णों को भी ओज व्यंजक वर्ण माना है। लोगस्स में द्विरुक्त ओज 'व्यंजक वर्गों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ हैं, उदाहरणार्थलोगस्स में 'रुस' धम्म में 'म्म' उज्जोयगरे में ‘ज्ज' मल्लिं में 'ल्ल' धम्मतित्थयरे में ‘म्म' निम्मलयरा में ‘म्म' कित्तइस्सं में 'त्त', 'स्स' मुणिसुव्वयं में 'व्व' पउमप्पहं में 'प्प' कित्तिय में 'त' समाहिवरमुत्तं में 'त' लोगस्स में 'स्स' चंदप्पहं में 'प्प' उत्तमा में 'त' सिज्जंस में ‘ज्ज' आरोग्ग में 'ग्ग' वासुपूज्यं में 'ज्ज' आइच्चेसु में ‘च्च' उपरोक्त वर्ण विन्यास को देखकर निस्संदेह कहा जा सकता है कि लोगस्स में ओज व्यंजक वर्गों का प्राचुर्य होने से नाद सौन्दर्य प्रभूत मात्रा में पाया जाता ४. श्रुत्यानुप्रास जब कंठ, तालु आदि एक ही स्थान से उच्चरित वर्णों की आवृत्ति या समानता हो तो श्रुत्यानुप्रास होता है। कविराज विश्वनाथ ने तालु आदि में से किसी एक उच्चारण स्थान से उच्चरित वर्णों की समता को श्रुत्यानुप्रास कहा है ६४ / लोगस्स-एक साधना-१
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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