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श. १३ : उ. ६ : सू. ११०-११७
करो । कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा कर आज्ञा को प्रत्यर्पित किया ।
१११. उस उद्रायण राजा ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुला कर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! केशीकुमार के लिए शीघ्र ही महान् अर्थ वाला, महान् मूल्यवाला, महान् अर्हता वाला, विपुल इस प्रकार राज्याभिषेक जैसे शिवभद्रकुमार की वक्तव्यता वैसे ही वक्तव्य है यावत् परम आयुष्य का पालन करो। इष्ट जनों से संपरिवृत होकर सिन्धु-सौवीर आदि सोलह जनपद, वीतीभय आदि तीन सौ तेसठ नगर आकर, महासेन आदि दस राजा, अन्य बहुत राजे, युवराज, कोटवाल, मडम्ब - पति, कुटुम्ब - पति, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि का आधिपत्य, पौरपत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व तथा आज्ञा देने में समर्थ और सेनापतित्व करते हुए तथा अन्य से आज्ञा का पालन करवाते हुए विहार करो, इस प्रकार 'जय जय' शब्द का प्रयोग किया।
भगवती सूत्र
११२. वह केशी कुमार राजा हो गया - महान् हिमालय, महान् मलय, मेरू और महेन्द्र की भांति यावत् राज्य का प्रशासन करता हुआ विहरण करने लगा ।
११३. उस उद्रायण राजा ने केशी राजा से पूछा ।
११४. केशी राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया - इस प्रकार जैसे जमालि की वक्तव्यता, वैसे ही वक्तव्य है यावत् भीतर और बाहर उसी प्रकार यावत् अभिनिष्क्रमण - अभिषेक उपस्थित किया ।
११५. अनेक गणनायक, दंडनायक, राजे, ईश्वर, कोटवाल, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत और संधिपालों के साथ, उनसे घिरे हुए केशी राजा ने उद्रायण राजा को प्रवर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख बिठाया, बिठाकर एक सौ आठ स्वर्ण कलश इस प्रकार जैसे जमालि (भ. ९ / १८२ ) की वक्तव्यता यावत् महान् महान् निष्क्रमण अभिषेक से अभिषिक्त किया। अभिषिक्त कर दोनों हथेलियों से संपुट आकार वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर 'जय हो विजय हो' के द्वारा वर्धापित किया, वर्धापित कर इस प्रकार बोला - स्वामी ! बताओ हम क्या दें ? क्या वितरण करें ? तुम्हें किस वस्तु का प्रयोजन है ?
११६. उद्रायण राजा ने केशी राजा से इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय ! मैं कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र को लाना तथा नापित को बुलाना चाहता हूं-इस प्रकार जैसे जमालि की वक्तव्यता, इतना विशेष है - प्रिय का विप्रयोग दुःसह है, इस प्रकार कहती हुई पद्मावती ने अग्रकेशों को ग्रहण किया ।
११७. केशी राजा ने दूसरी बार उत्तराभिमुख सिंहासन की रचना कराई । रचना करा कर राजा उद्रायण को श्वेत-पीत कलशों से स्नान कराया, करा कर शेष जमालि की भांति वक्तव्यता यावत् चतुर्विध अलंकारों से अलंकृत किया । वह प्रतिपूर्ण अलंकृत होकर सिंहासन से उठा, उठकर शिविका की अनुप्रदक्षिणा करता हुआ शिविका पर आरूढ हो गया। आरूढ हो प्रवर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख आसीन हुआ। वैसे ही धाय- मां भद्रासन पर आसीन हुई । इतना विशेष है - पद्मावती हंस लक्षण वाला पटशाटक ग्रहण कर शिविका की अनुप्रदक्षिणा
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