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________________ भगवती सूत्र श. १३ : उ. ४ : सू. ५०-५४ गौतम ! जंबूद्वीप- द्वीप के मंदर-पवत के बहुमध्य- देश-भाग में इस रत्नप्रभा - पृथ्वी के उपरितन और अधस्तन इन दोनों क्षुल्लक प्रतरों में तिर्यग्-लोक का मध्य है वहां आठ रुचक- प्रदेश प्रज्ञप्त हैं, जहां से ये दस दिशाएं निकलती हैं, जैसे १. पूर्व २. पूर्व - दक्षिण ३. दक्षिण ४. दक्षिण-पश्चिम ५. पश्चिम ६. पश्चिम - उत्तर ७. उत्तर ८. उत्तर - पूर्व ९. ऊर्ध्व १०. अधः । ५१. भंते ! इन दस दिशाओं के कितने नाम प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! दस नाम प्रज्ञप्त हैं जैसे इन्द्रा, आग्नेयी, याम्या, नैर्ऋति, वारुणी, वायव्या, सोमा, ईशानी, विमला और तमा ज्ञातव्य है । ५२. भंते ! इंद्रा-दिशा का आदि स्रोत क्या है ? वह कहां से प्रवाहित है ? आदि में उसके कितने प्रदेश हैं ? उत्तरोत्तर कितने प्रदेशों की वृद्धि होती हैं ? उसके कितने प्रदेश हैं ? क्या वह पर्यवसित है ? उसका संस्थान क्या है ? गौतम ! इंद्रा-दिशा का आदि स्रोत रुचक है । वह रुचक से प्रवाहित है, आदि में दो- प्रदेश वाली है, उत्तरोत्तर दो-दो प्रदेश की वृद्धि वाली है । लोक की अपेक्षा असंख्येय प्रदेश हैं, अलोक की अपेक्षा अनन्त प्रदेश हैं । लोक की अपेक्षा सादि - सपर्यवसित है। अलोक की अपेक्षा सादि-अपर्यवसित है। लोक की अपेक्षा मुरज संस्थान वाली, अलोक की अपेक्षा शकट - उद्धि संस्थान वाली प्रज्ञप्त है। ५३. भंते! आग्नेयी - दिशा का आदि स्रोत क्या है ? वह कहां से प्रवाहित है ? आदि में कितने प्रदेश हैं ? कितने प्रदेश का विस्तार है ? उसके कितने प्रदेश हैं? क्या वह पर्यवसित है ? संस्थान क्या है ? गौतम ! आग्नेयी - दिशा का आदि स्रोत रुचक है। वह रुचक से प्रवाहित है। आदि में एक प्रदेश है। एक प्रदेश का विस्तार है। उसके उत्तरोत्तर प्रदेश की वृद्धि नहीं होती । लोक की अपेक्षा असंख्येय प्रदेश हैं। अलोक की अपेक्षा अनंत प्रदेश हैं। लोक की अपेक्षा सादि- सपर्यवसित है। अलोक की अपेक्षा सादि - अपर्यवसित है। वह छिन्न मुक्तावलि संस्थान वाली प्रज्ञप्त है 1 = याम्या इन्द्रा की भांति नैर्ऋति आग्नेयी की भांति वक्तव्य है। इस प्रकार इन्द्रा की भांति चार दिशाएं वक्तव्य हैं । आग्नेयी की भांति चार विदिशाएं वक्तव्य हैं। ५४. भंते ! विमला-दिशा का आदि स्रोत क्या है ? वह कहां से प्रवाहित है ? आदि में कितने प्रदेश हैं ? कितने प्रदेश का विस्तार है ? उसके कितने प्रदेश वाली हैं ? क्या पर्यवसित है ? संस्थान क्या है ? गौतम ! विमला - दिशा का आदि स्रोत रुचक है। वह रुचक से प्रवाहित है। उसके आदि में प्रदेश चार हैं। दो प्रदेश का विस्तार है। उसके उत्तरोत्तर प्रदेश की वृद्धि नहीं होती लोक की अपेक्षा असंख्येय प्रदेश हैं। अलोक की अपेक्षा अनंत प्रदेश हैं। लोक की अपेक्षा सादि ४९९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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