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________________ भगवती सूत्र श. ३६ : उ. २- ११ : श. २-८ : सू. ४-११ वहां बतलाय गये थे । ग्यारहवां नानात्व इस प्रकार है - प्रथम समय के कृतयुग्म कृतयुग्म- द्वीन्द्रिय-जीव मन योगी नहीं होते, वचन - योगी नहीं होते, केवल काय-योगी होते हैं। शेष जैसा द्वीन्द्रिय-जीवों का प्रथम उद्देशक (भ. ३६ । १- ३) बतलाया गया है वैसा ही इन जीवों के विषय में बतलाना चाहिए। ५. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है। ६. इसी प्रकार ये ग्यारह उद्देशक जिस प्रकार एकेन्द्रिय- महायुग्मों के विषय में बतलाये गये थे वैसे ही बतलाने चाहिए, केवल इतना अन्तर है - चौथे, आठवें और दसवें उद्देशक में इन जीवों में सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं बतलाने चाहिए। जैसे एकेन्द्रिय-जीवों में प्रथम, तृतीय और पञ्चम उद्देशक में एक ही गमक है तथा शेष आठ उद्देशकों में एक ही गमक है, वैसे ही यहां बतलाने चाहिए । दूसरा- बारहवां द्वीन्द्रिय- महायुग्म - शतक (दूसरा शतक ) ७. भन्ते ! कृष्णलेश्य-कृतयुग्म - कृतयुग्म- द्वीन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? इसी प्रकार बतलाना चाहिए। (भ. ३६ ।४) कृष्णलेश्य - कृतयुग्म - कृतयुग्म - द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में ग्यारह उद्देशक संयुक्त शतक उसी प्रकार बतलाना चाहिए, (जैसा भ. ३६।६ में बतलाया गया है), केवल इतना अन्तर है - इन जीवों में लेश्या एवं संस्थान - काल वैसा ही बतलाना चाहिए जैसा कृष्णलेश्य एकेन्द्रिय-जीवों का बतलाया गया है। (भ. ३५।४४-४७) (तीसरा शतक ) ८. इसी प्रकार नीललेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में भी (ग्यारह उद्देशक संयुक्त) शतक बतलाना चाहिए । (चौथा शतक) ९. इसी प्रकार कापोतलेश्य - कृतयुग्म - कृतयुग्म - द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में भी (ग्यारह उद्देशक संयुक्त शतक बतलाना चाहिए ) । (पांचवां-आठवां शतक) १०. भन्ते ! भवसिद्धिक- कृतयुग्म - कृतयुग्म - द्वीन्द्रिय-जीव ( कहां से आकर उत्पन्न होते हैं)....(पृच्छा)? इसी प्रकार भवसिद्धिक- कृतयुग्म - कृतयुग्म - द्वीन्द्रिय-जीवों के विषय में भी चार शतक बतलाने चाहिए जैसे पूर्वगमक में बतलाये गये हैं (भ. ३५ ।५७-६७), केवल इतना अन्तर है- क्या सभी प्राण (भूत, जीव और सत्त्व) ( यावत् पहले उत्पन्न हुए थे तक पृच्छा?) ( गौतम !) वह अर्थ संगत नहीं है । शेष उसी प्रकार चार औधिक शतक यहां बतलाने चाहिए । ११. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । ९३३
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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