SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छत्तीसवां शतक पहला द्वीन्द्रिय-महायुग्म-शतक पहला उद्देशक महायुग्म-द्वीन्द्रियों में उपपात-आदि-पद १. भन्ते! कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं...? कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीवों का उपपात जैसा अवक्रान्ति-पद (पण्णवणा, ६८६) में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए। इन जीवों का परिमाण-एक समय में ये जीव सोलह अथवा संख्येय अथवा असंख्येय उत्पन्न होते हैं। इन जीवों का अपहार (समय-समय पर अपहरण किये जाने पर (निकाले जाने पर))-जैसा उत्पल-उद्देशक (भ. ११।४) में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए। इन जीवों की अवगाहना जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कर्षतः बारह योजन होती है। इसी प्रकार जैसा एकेन्द्रिय-महायुग्मों के विषय में पहले उद्देशक (भ. ३५।१०) में बतलाया गया है वैसा ही बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है इन जीवों के तीन लेश्याएं होती हैं. इनमें देव उत्पन्न नहीं होते हैं। ये जीव सम्यग्-दृष्टि भी होते हैं, मिथ्या-दृष्टि भी होते हैं, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नहीं होते। ये जीव ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं। ये जीव मन-योगी नहीं होते, वचन-योगी भी होते हैं, काय-योगी भी होते हैं। २. भन्ते! वे कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीव काल की अपेक्षा से कितने समय तक रहते हैं? गौतम! वे कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीव काल की अपेक्षा से जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः संख्येय काल तक रहते हैं। उनकी स्थिति जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः बारह वर्ष की है। वे आहार नियमतः छहों दिशाओं से ग्रहण करते हैं। इन जीवों के तीन समुद्घात (वेदना, कषाय और मारणान्तिक) होते हैं, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए यावत् 'अनन्त बार' तक। (भ. ३५।२३) इसी प्रकार सोलह ही युग्मों के विषय में बतलाना चाहिए। ३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। दूसरा-ग्यारहवां उद्देशक ४. भन्ते! प्रथम समय के कृतयुग्म-कृतयुग्म-द्वीन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं...? इसी प्रकार जैसा एकेन्द्रिय-महायुग्मों के विषय में प्रथम-समय- उद्देशक (भ. ३५।२२-२४) बतलाया गया था वैसा बतलाना चाहिए। यहां पर भी वे ही दस नानात्व बतलाने चाहिए जो ९३२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy