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________________ भगवती सूत्र श. ३५ : उ. १-११: श. १,२ : सू. ४३-५२ और दसवें उद्देशक में देव उत्पन्न नहीं होते हैं, इसलिए तेजोलेश्या नहीं होती, ऐसा बतलाना चाहिए । दूसरा एकेन्द्रिय महायुग्म शतक पहला उद्देश ४४. भन्ते ! कृष्णलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? गौतम ! कृष्णलेश्य - कृतयुग्म कृतयुग्म - एकेन्द्रिय-जीवों की उत्पत्ति उसी प्रकार बतानी चाहिए जैसा औधिक - उद्देशक (उद्देशक ३५।३-२० ) में बतलायी गई है, केवल इतना अन्तर है - यह नानात्व है। ४५. भन्ते ! वे जीव कृष्णलेश्य हैं ? हां, वे जीव कृष्णलेश्य हैं। ४६. भन्ते ! वे कृष्णलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीव काल की अपेक्षा से कितने समय तक रहते हैं ? गौतम ! वे कृष्णलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीव काल की अपेक्षा से जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः अन्तर्मुहूर्त रहते हैं। इसी प्रकार उनकी स्थिति (कृष्ण-लेश्या वाले जीवों की स्थिति) भी बतलानी चाहिए। शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए यावत् 'अनन्त - बार' तक । इसी प्रकार सोलह युग्म भी बतलाने चाहिए । ४७. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । दूसरा उद्देशक ४८. भन्ते ! प्रथम समय के कृष्णलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं.... ? जैसा प्रथम-समय- उद्देशक बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है ४९. भन्ते ! वे जीव कृष्णलेश्य हैं ? हां, वे जीव कृष्णलेश्य हैं। शेष उसी प्रकार वक्तव्य है । (भ. ३५/४६) ५०. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । तीसरा से ग्यारहवां उद्देशक ५१. इस प्रकार जैसे औधिक शतक (भ. ३५।२२-४३) ग्यारह उद्देशक बतलाए गये उसी प्रकार कृष्णलेश्य - शतक में भी ग्यारह उद्देशक बतलाने चाहिए। इनमें पहला, तीसरा और पांचवां उद्देशक समान गमक वाले हैं, शेष आठ उद्देशक भी समान गमक वाले हैं, केवल इतना अन्तर है-चोथे, आठवें और दसवें उद्देशक में देवों का उपपात नहीं है । ५२. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है। ९२९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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