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________________ भगवती सूत्र श. ३३ : श. २ : उ. २ ११ : सू. ३७-४४ ३७. भन्ते! कृष्णलेश्य अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक-जीवों के कितनी कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसा औघिक (समुच्चय) - उद्देशक में बतलाया गया है वैसा ही प्रज्ञप्त हैं, वैसा ही बन्ध होता है, वैसे ही वेदन करते हैं । ३८. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्त ! वह ऐसा ही है । दूसरा उद्देशक ३९. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न (प्रथम समय के ) - कृष्ण - लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! अनन्तर - उपपन्न - कृष्ण - लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार ( प्रज्ञप्त हैं) । इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा अनन्तर - उपपन्न- कृष्ण - लेश्या वाले पृथ्वीकायिक- जीव के उसी प्रकार दो भेद प्रज्ञप्त हैं यावत् वनस्पतिकायिक | ४०. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न (प्रथम समय के ) - कृष्ण - लेश्या वाले सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीवों के कितनी कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं ? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसा औघिक (समुच्चय) - अनन्तर - उपपन्न - (एकेन्द्रिय) - जीवों का उद्देशक बतलाया गया उसी प्रकार यावत् 'वेदन करते हैं' तक वक्तव्य है। ४१. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । तीसरा - ग्यारहवां उद्देशक ४२. भन्ते ! परम्पर-उपपन्न (प्रथम समय को छोड़कर दूसरे, तीसरे आदि समय के) - कृष्ण- लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! परम्पर- उपपन्न - कृष्ण - लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे—पृथ्वीकायिक आदि, इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा परम्पर- उपपन्न - कृष्ण-लेश्या वाले पृथ्वीकायिक- जीव के चार भेद उसी प्रकार वक्तव्य हैं यावत् 'वनस्पतिकाय' तक जानने चाहिए। ४३. भन्ते ! परम्पर- उपपन्न - कृष्ण - लेश्या वाले अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीवों के कितनी कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जिस प्रकार औधिक (समुच्चय) - परम्पर- उपपन्न - (एकेन्द्रिय) - जीवों का उद्देशक बतलाया गया उसी प्रकार 'वेदन करते हैं' तक वक्तव्य है । इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसे औधिक (समुच्चय) - एकेन्द्रिय- शतक के ग्यारह उद्देशक बताये गये वैसे ही कृष्णलेश्य - शतक के भी (ग्यारह उद्देशक) यावत् 'अचरम- चरम-कृष्ण-लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीवों तक बताने चाहिए । तीसरा, चौथा शतक (तीसरा शतक ) ४४. जैसे कृष्ण-लेश्या वाले (एकेन्द्रिय) - जीवों के साथ (दूसरा) शतक बतलाया गया वैसे ही नील-लेश्या वाले (एकेन्द्रिय) - जीवों के साथ भी ( तीसरा ) शतक बतलाना चाहिए। ९००
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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