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________________ भगवती सूत्र श. ३३ : श. १ : उ. ६-११ उ. १ : सू. २७-३६ (छट्ठा उद्देशक) २७. अनन्तर-आहारक-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में अनन्तर-उपपन्न -एकेन्द्रिय-जीवों की भांति वक्तव्य है। (सातवां उद्देशक) २८. परम्पर-आहारक-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में परम्पर-उपपन्न-एकेन्द्रिय -जीवों की भांति वक्तव्य है। (आठवां उद्देशक) २९. अनन्तर-पर्याप्त-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में अनन्तर-उपपन्न-एकेन्द्रिय -जीवों की भांति वक्तव्य है। (नवां उद्देशक) ३०. परम्पर-पर्याप्त-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में परम्पर-उपपन्न-एकेन्द्रिय -जीवों की भांति वक्तव्य है। (दशवां उद्देशक) ३१. चरम-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में परम्पर-उपपन्न-एकेन्द्रिय-जीवों की भांति वक्तव्य हैं। (ग्यारहवां उद्देशक) ३२. इसी प्रकार अचरम-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में (परम्पर-उपपन्नएकेन्द्रिय-जीवों की भांति) वक्तव्य है। इसी प्रकार ये ग्यारह उद्देशक प्रथम-एकेन्द्रिय-शतक के जानने चाहिए। ३३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुवे विहरण कर रहे हैं। दूसरा शतक पहला उद्देशक ३४. भन्ते! कृष्ण-लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! कृष्ण-लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे—पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। ३५. भन्ते! कृष्ण-लेश्या वाले पृथ्वीकायिक-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! कृष्ण-लेश्या वाले पृथ्वीकायिक-जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक और बादर-पृथ्वीकायिक। ३६. भन्ते! कृष्ण-लेश्या वाले सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा कृष्ण-लेश्या वाले पृथ्वीकायिक-जीवों के चार भेद औधिक (समुच्चय)-उद्देशक की भांति वक्तव्य हैं। ८९९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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