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________________ श. २६ : उ. ३-७ : सू. ३४-४२ भगवती सूत्र का बन्ध तथा आठ कर्म के आठ दण्डक) का संग्रह अपेक्षित है। आठों कर्म-प्रकृतियों में उस कर्म की जो वक्तव्यता है, वह न हीन और न अधिक ज्ञातव्य है। यावत् परम्पर-उपपन्नक वैमानिक-देव और अनाकार-उपयोग-उपयुक्त तक की वक्तव्यता। ३५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। चौथा उद्देशक (अनन्तरावगाढ का बन्धाबन्ध-पद) ३६. भन्ते! प्रथम समय में जिस क्षेत्र का अवगाहन जिस नैरयिक ने किया था उस अनन्तरावगाढ-नैरयिक जीव ने क्या पाप-कर्म का बन्ध किया था...? पृच्छा। (भ. २६/१) गौतम! किसी अनन्तरावगाढ-नैरयिक-जीव ने पाप-कर्म का बंध किया था, इसी प्रकार जैसे अनन्तरोपपन्नक-नवदण्डक-संगृहीत-उद्देशक की वक्तव्यता, वैसे ही अनन्तरावगाढ-नैरयिक जीव की भी न हीन और न अधिक वक्तव्यता। (अनन्तरावगाढ)-नैरयिक आदिक जीव यावत् (अनन्तरावगाढ)-वैमानिक-देव तक वक्तव्यता। (भ. २६/२९-३२) ३७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। पांचवां उद्देशक (परम्परावगाढ का बन्धाबन्ध) ३८. भन्ते! दूसरे, तीसरे आदि समय में जिस क्षेत्र का अवगाहन जिस नैरयिक ने किया था उस परम्परावगाढ-नैरयिक जीव ने क्या पाप-कर्म का बन्ध किया था....? (भ. २६/१) जिस प्रकार परम्परोपपन्नक-उद्देशक की वक्तव्यता है। (भ. २६/३४) वही निरवशेष वक्तव्य ३९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। छठा उद्देशक (अनन्तराहारक का बन्धाबन्ध) ४०. भन्ते! प्रथम समय में जिस नैरयिक ने आहार लिया था उस अनन्तराहारक-नैरयिक-जीव ने क्या पाप-कर्म का बन्ध किया था.....? पृच्छा। (भ. २६/१)। इसी प्रकार जैसे अनन्तरोपपन्नक -उद्देशक की वक्तव्यता है (भ. २६/२९-३२) वही निरवशेष वक्तव्य है। ४१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। सातवां उद्देशक (परम्पराहारक का बन्धाबन्ध) ४२. भंते! दूसरे, तीसरे आदि समय में जिस नैरयिक ने आहार लिया था उस परम्पराहारक ८७२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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