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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ ६ : सू. ३६२-३६९ ३६२. भन्ते ! इन पुलाक, बकुश, प्रतिषेवणा-कुशल, कषाय-कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक भिक्षुओं के जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र - पर्यवों में कौन किनसे अल्प ? बहुत ? तुल्य ? या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! इन (छह प्रकार के निर्ग्रन्थों के जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र - पर्यवों में) १. पुलाक और कषाय-कुशील इन दोनों के जघन्य चारित्र - पर्यव परस्पर तुल्य और सबसे अल्प होते हैं । २. पुलाक के उत्कृष्ट चारित्र - पर्यव उनसे अनन्त गुणा होते हैं । ३. बकुश और प्रतिषेवणा- कुशील- इन दोनों के जघन्य चारित्र - पर्यव परस्पर तुल्य और पूर्व से अनन्त - गुणा होते हैं । ४. बकुश के उत्कृष्ट चारित्र-पर्यव पूर्व से अनन्त - गुणा होते हैं । ५. प्रतिषेवणा-कुशील के उत्कृष्ट चारित्र-पर्यव पूर्व से अनन्त - गुणा होते हैं । ६. कषाय- कुशील के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव पूर्व से अनन्त - गुणा होते हैं । ७. निर्ग्रन्थ और स्नातक – इन दोनों के अजघन्य और अनुत्कृष्ट अर्थात् केवल एक चारित्र - पर्यव परस्पर तुल्य और पूर्व से अनन्त गुणा होता 1 योग- पद ३६३. भन्ते ! क्या पुलाक सयोगी होता है ? अयोगी होता है ? गौतम ! पुलाक सयोगी होता है, अयोगी नहीं होता । ३६४. यदि सयोगी होता है तो क्या मन-योगी होता है ? वचन -योगी होता है ? काय - योगी होता है ? गौतम ! मन- योगी भी होता है, यावत् निर्ग्रन्थ की वक्तव्यता । वचन -‍ -योगी भी होता है, काय योगी भी होता है । इसी प्रकार ३६५. स्नातक.. ? पृच्छा (भ. २५/३६३) । गौतम ! स्नातक सयोगी भी होता है, अयोगी भी होता है । यदि सयोगी होता है तो क्या मन-योगी होता है...... शेष पुलाक की भांति वक्तव्यता । उपयोग - पद ३६६. भन्ते ! क्या पुलाक साकारोपयोग वाला होता है ? अनाकारोपयोग वाला होता है ? गौतम ! साकारोपयोग वाला होता है अथवा अनाकारोपयोग वाला होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक की वक्तव्यता । कषाय-पद ३६७. भन्ते ! क्या पुलाक कषाय सहित होता है ? कषाय-रहित होता है ? गौतम ! कषाय सहित होता है, कषाय-रहित नहीं होता । ३६८. यदि कषाय-सहित होता है तो भन्ते ! वह कितने कषायों से युक्त होता है ? गौतम ! चारों कषायों - क्रोध, मान, माया और लोभ से युक्त होता है। इसी प्रकार बकुश की वक्तव्यता। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता । ३६९. कषाय-कुशील ? पृच्छा (भ. २५/३६७) । ८३०
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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