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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. ६ : सू. ३५४-३६१ ३५४. भन्ते ! एक बकुश भिक्ष विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा प्रतिषेवणा- कुशील के चारित्र - पर्यवों से क्या हीन है ? (गौतम !) षट्स्थान - पतित होता है। इसी प्रकार कषाय-कुशील की भी वक्तव्यता । ३५५. भन्ते ! ( एक बकुश) भिक्षु विजातीय संयम स्थानों संयोजना की अपेक्षा निर्ग्रन्थ के चारित्र - पर्यवों से पृच्छा-क्या हीन है ? तुल्य है ? अभ्यधिक है ? गौतम ! हीन है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक नहीं है - वह उससे अनन्त - गुणा-हीन है। इसी प्रकार स्नातक की भी वक्तव्यता । ( वह उससे अनन्त गुणा-हीन है ) । प्रतिषेवणा-कुशील-निर्ग्रन्थ का अन्य निर्ग्रन्थों के साथ सन्निकर्ष के विषय में जैसी बकुश-निर्ग्रन्थ का अन्य निर्ग्रन्थों के साथ सन्निकर्ष के विषय में वक्तव्यता है वैसी बतलानी चाहिए। कषाय-कुशील-निर्ग्रन्थ का अन्य निर्ग्रन्थों के साथ सन्निकर्ष के विषय में यही वक्तव्यता जो बकुश-निर्ग्रन्थ का अन्य निर्ग्रन्थों के साथ सन्निकर्ष के विषय में है वही बतलानी चाहिए, केवल इतना विशेष है - कषाय-कुशील-निर्ग्रन्थ का पुलाक-निर्ग्रन्थ के साथ सन्निकर्ष के विषय में षट्स्थान-पतित बतलाना चाहिए । ३५६. भन्ते ! एक निर्ग्रन्थ विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा पुलाक भिक्षु के चारित्र - पर्यवों से....? पृच्छा (भ. २५/३५१) । गौतम! हीन नहीं है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक है - अनन्त - गुणा - अभ्यधिक है । इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील की वक्तव्यता । ३५७. भन्ते ! एक निर्ग्रन्थ सजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा दूसरे निर्ग्रन्थ के चारित्र - पर्यवों से... .? पृच्छा (भ. २५ / ३५१) । गौतम ! हीन नहीं है, तुल्य है, अभ्यधिक नहीं है। 1 ३५८. भन्ते ! एक निर्ग्रन्थ विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा स्नातक के सन्निकर्ष से चारित्र - पर्यवों से......? पृच्छा । गौतम ! हीन नहीं है, तुल्य है, अभ्यधिक नहीं है । ३५९. भन्ते ! एक स्नातक विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा पुलाक भिक्षु चारित्र - पर्यवों से...? पृच्छा। गौतम ! हीन नहीं है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक है - अनन्त - गुणा - अभ्यधिक है। इसी प्रकार यावत् कषायकुशील की वक्तव्यता । ३६०. भन्ते ! स्नातक विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा निर्ग्रन्थ के चारित्र - पर्यवों से.. .? पृच्छा (भ. २५ / ३५१)। गौतम ! हीन नहीं है, तुल्य है, अभ्यधिक नहीं है । ३६१. भन्ते ! स्नातक सजातीय संयम स्थानों की अपेक्षा दूसरे स्नातक चारित्र - पर्यवों से......? पृच्छा (भ. २५ / ३५१) । गौतम ! हीन नहीं है, तुल्य है, अभ्यधिक नहीं है । ८२९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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