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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. ४ : सू. १३५-१४१ १३५. भन्ते! आभिनिबोधिक-ज्ञान(मति-ज्ञान)-पर्यवों की अपेक्षा क्या (एक) जीव कृतयुग्म है.....? पृच्छा । गौतम! आभिनिबोधिक-ज्ञान के पर्यवों की अपेक्षा (एक) जीव स्यात् कृतयुग्म है, यावत् स्यात् कल्योज है। इसी प्रकार (एक) एकेन्द्रिय को छोड़ कर यावत् (एक) वैमानिक की वक्तव्यता। १३६. भन्ते! आभिनिबोधिक-ज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा (अनेक) जीव.....? पृच्छा। गौतम! आभिनिबोधिक-ज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा (अनेक) जीव-ओघादेश से स्यात् कृतयुग्म हैं यावत् स्यात् कल्योज हैं, विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं यावत् कल्योज भी हैं। इसी प्रकार (अनेक) एकेन्द्रिय को छोड़ कर यावत् (अनेक) वैमानिकों की वक्तव्यता। इसी प्रकार श्रुत-ज्ञान-पर्यवों की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार अवधि-ज्ञान के पर्यवों की भी वक्तव्यता। केवल इतना विशेष है-विकलेन्द्रियों के अवधि-ज्ञान नहीं होता। इसी प्रकार मनःपर्यव-ज्ञान-पर्यवों की वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-वह जीवों में केवल मनुष्यों के होता है। शेष दण्डकों में नहीं होता। १३७. भन्ते! केवल-ज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा क्या (एक) जीव कृतयुग्म है...? पृच्छा। गौतम ! केवल-ज्ञान के पर्यवों की अपेक्षा (एक) जीव कृतयुग्म है, त्र्योज नहीं है, द्वापरयुग्म नहीं है, कल्योज नहीं है। इसी प्रकार (एक) मनुष्य की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार (एक) सिद्ध की भी वक्तव्यता। १३८. भन्ते! केवल-ज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा क्या (अनेक) जीव कृतयुग्म हैं?....पृच्छा। गौतम! केवल-ज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा (अनेक) जीव–ओघादेश से भी और विधानादेश से भी कृतयुग्म हैं, त्र्योज नहीं हैं, द्वापरयुग्म नहीं हैं, कल्योज नहीं हैं। इसी प्रकार (अनेक) मनुष्यों की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार (अनेक) सिद्धों की भी वक्तव्यता। १३९. भन्ते! मति-अज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा (एक) जीव क्या कृतयुग्म है....? (गौतम!) जैसे आभिनिबोधिक-ज्ञान(मति-ज्ञान)-पर्यवों की अपेक्षा बताया गया है वैसे ही दो दण्डक (एकवचन और बहुवचन) बताने चाहिए। इसी प्रकार श्रुत-अज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा वक्तव्यता। इसी प्रकार विभंग-ज्ञान-पर्यवों की अपेक्षा वक्तव्यता। चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन और अवधि-दर्शन के पर्यवों की अपेक्षा भी इसी प्रकार वक्तव्यता। केवल इतना विशेष है जिसके जो प्राप्त है वह वक्तव्य है। केवल-दर्शन-पर्यव केवल-ज्ञान-पर्यवों की भांति वक्तव्य हैं। शरीर-पद १४०. भन्ते! शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं? गौतम! शरीर पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे औदारिक यावत् कार्मक। पण्णवणा का शरीर-पद (पद १२) अविकल रूप में वक्तव्य है। सप्रकम्प-अप्रकम्प-पद १४१. भन्ते! क्या जीव सैज (सप्रकम्पन) हैं? या निरेज (अप्रकंपन) हैं? ८०१
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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