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________________ श. २५ : उ. ४ : सू. १२८-१३४ भगवती सूत्र १२८. (भन्ते!) (अनेक) नैरयिक .....? पृच्छा। गौतम! (अनेक) नैरयिक जीव ओघादेश से स्यात् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ हैं, यावत् स्यात् कल्योज-प्रदेशावगाढ हैं, विधानादेश से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ भी हैं, यावत् कल्योज-प्रदेशावगाढ भी हैं। इसी प्रकार (अनेक) एकेन्द्रिय और सिद्धों को छोड़ कर सभी जीवों की वक्तव्यता। (अनेक) सिद्ध और (अनेक) एकेन्द्रिय की जीव की भांति वक्तव्यता। १२९. भन्ते! क्या (एक) जीव कृतयुग्म-समय-स्थिति वाला है.......? पृच्छा। गौतम! (एक) जीव कृतयुग्म-समय-स्थिति वाला है, योज-समय-स्थिति वाला नहीं है, द्वापरयुग्म-समय-स्थिति वाला नहीं है, कल्योज-समय-स्थिति वाला नहीं है। १३०. भन्ते! (एक) नैरयिक......? पृच्छा। गौतम! (एक) नैरयिक स्यात् कृतयुग्म-समय-स्थिति वाला है, यावत् स्यात् कल्योज-समय-स्थिति वाला है। इसी प्रकार यावत् (एक) वैमानिक की वक्तव्यता। (एक) सिद्ध की (एक) जीव की भांति वक्तव्यता। १३१. भन्ते! (अनेक) जीव .....? पृच्छा। गौतम! (अनेक) जीव ओघादेश से भी, विधानादेश से भी कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं, त्र्योज-समय की स्थिति वाले नहीं हैं, द्वापरयुग्म-समय की स्थिति वाले नहीं हैं, कल्योज -समय की स्थिति वाले नहीं हैं। १३२. भन्ते! (अनेक) नैरयिक.....? पृच्छा। गौतम! (अनेक) नैरयिक ओघादेश से स्यात् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं, यावत् स्यात् कल्योज-समय की स्थिति वाले भी हैं। विधानादेश से कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले भी हैं, यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाले भी हैं। इसी प्रकार यावत् (अनेक) वैमानिकों की वक्तव्यता। (अनेक) सिद्धों की (अनेक) जीवों की भांति वक्तव्यता। १३३. भन्ते! क्या (एक) जीव कृष्ण-वर्ण-पर्यवों की अपेक्षा कृतयुग्म है...? पृच्छा। गौतम! जीव-प्रदेशों की अपेक्षा (एक) जीव कृतयुग्म नहीं है, यावत् कल्योज नहीं है। शरीर-प्रदेशों की अपेक्षा (एक) जीव स्यात् कृतयुग्म है, यावत् स्यात् कल्योज है। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। (एक) सिद्ध अशरीर है, इसलिए उसकी पृच्छा अपेक्षित नहीं है। १३४. भन्ते! क्या (अनेक) जीव कृष्ण-वर्ण-पर्यवों की अपेक्षा...? पृच्छा। गौतम! जीव-प्रदेशों की अपेक्षा (अनेक) जीव ओघादेश से भी, विधानादेश से भी कृतयुग्म नहीं है, यावत् कल्योज नहीं है। शरीर-प्रदेशों की अपेक्षा से (अनेक) जीव ओघादेश से स्यात् कृतयुग्म है, यावत् स्यात् कल्योज है; विधानादेश से कृतयुग्म भी है, यावत् कल्योज भी है। इसी प्रकार यावत् (अनेक) वैमानिकों की वक्तव्यता। इसी प्रकार नील-वर्ण-पर्यवों की अपेक्षा से वक्तव्य है, एकवचन और बहुवचन वाले दोनों दंडक वक्तव्य हैं। इस प्रकार यावत् रूक्ष-स्पर्श-पर्यवों की वक्तव्यता। ८००
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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