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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. ३ : सू. ५६-६३ संस्थानों के युग्म आदि का पद ५६. भन्ते! (एक) परिमण्डल-संस्थान द्रव्य की अपेक्षा क्या कृतयुग्म है? त्र्योज है? द्वापरयुग्म है? कल्योज है? गौतम! (एक) परिमण्डल-संस्थान द्रव्य की अपेक्षा न कृतयुग्म है, न योज है, न द्वापरयुग्म है, कल्योज है। ५७. भन्ते! वृत्त-संस्थान द्रव्य की अपेक्षा....? पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान । ५८. भन्ते! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान द्रव्य की अपेक्षा क्या कृतयुग्म हैं, त्र्योज हैं...? पृच्छा । गौतम! (अनेक) परिमण्डल संस्थान ओघ (समुच्चय) की अपेक्षा स्यात् कृतयुग्म हैं, स्यात् योज हैं, स्यात् द्वापरयुग्म हैं, स्यात् कल्योज हैं। विधान (एक-एक द्रव्य के प्रदेश) की अपेक्षा कृतयुग्म नहीं हैं, त्र्योज नहीं हैं, द्वापरयुग्म नहीं हैं, कल्योज है। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान। ५९. भन्ते! (एक) परिमण्डल-संस्थान प्रदेश की अपेक्षा क्या कृतयुग्म है....? पृच्छा। गौतम! (एक) परिमण्डल-संस्थान प्रदेश की अपेक्षा स्यात् कृतयुग्म है, स्यात् त्र्योज है, स्यात् द्वापरयुग्म है, स्यात् कल्योज है। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान । ६०. भन्ते! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान प्रदेश की अपेक्षा क्या कृतयुग्म हैं....? पृच्छा। गौतम! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान ओघ की अपेक्षा स्यात् कृतयुग्म हैं यावत् स्यात् कल्योज हैं, विधान की अपेक्षा कृतयुग्म भी हैं, त्र्योज भी हैं, द्वापरयुग्म भी हैं, कल्योज भी हैं। इसी प्रकार यावत् आयत-संस्थान। ६१. भन्ते! (एक) परिमण्डल-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है यावत् कल्योज-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है? गौतम! (एक) परिमण्डल-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, त्र्योज-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला नहीं है, द्वापरयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला नहीं हैं, कल्योज-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला नहीं है। ६२. भन्ते! (एक) वृत्त-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है...? पृच्छा। गौतम! (एक) वृत्त-संस्थान स्यात् कृतयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, स्यात् योज-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, द्वापरयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन नहीं करता, स्यात् कल्योज-प्रदेश का अवगाहन करने वाला है। ६३. भन्ते! (एक) त्रिकोण-संस्थान क्या कृतयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है....? पृच्छा । गौतम! (एक) त्रिकोण-संस्थान स्यात् कृतयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, स्यात् योज-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, स्यात् द्वापरयुग्म-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, कल्योज-प्रदेश का अवगाहन नहीं करता। ७९१
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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