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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. ३ : सू. ५३-५५ आठ प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और आठ आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त- प्रदेशी है (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। ५४. भन्ते ! आयत-संस्थान कितने प्रदेश वाला है? कितने प्रदेश का अवगाहन करने वाला प्रज्ञत है ? गौतम! आयत-संस्थान तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- श्रेणी - आयत, प्रतर- आयत, घन- आयत । जो श्रेणी - आयत है, वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- ओजस्प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । जो ओजस्प्रदेशिक है वह जघन्यतः तीन प्रदेशी ( परमाणु - स्कन्ध) और तीन आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त- प्रदेशी ( परमाणु- स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो युग्मप्रदेशिक है वह जघन्यतः दो- प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और दो आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त प्रदेशी (परमाणु - स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है । जो प्रतर- आयत है, वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- ओजस्प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । जो ओजस्प्रदेशिक है वह जघन्यतः पन्द्रह - प्रदेशी ( परमाणु-स्कन्ध) और पंद्रह आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है । उत्कृष्टतः अनन्त- प्रदेशी ( परमाणु - स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो युग्मप्रदेशिक है, वह जघन्यतः छह - प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और छह आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त- प्रदेशी (परमाणु - स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है । जो घन-आयत है वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- ओजस्प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । जो ओजस्प्रदेशिक है वह जघन्यतः पैंतालीस - प्रदेशी ( परमाणु- स्कन्ध) और पैंतालीस आकाश- प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त प्रदेशी ( परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो युग्मप्रदेशिक है, वह जघन्यतः बारह - प्रदेशी (परमाणु - स्कन्ध) और बारह आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त- प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। ५५. भन्ते । परिमण्डल- संस्थान कितने प्रदेश वाला.....है ? पृच्छा । गौतम ! परिमण्डल - संस्थान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- घन परिमण्डल और प्रतर- परिमण्डल । जो प्रतर - परिमण्डल है वह जघन्यतः बीस- प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और बीस आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त- प्रदेशी ( परमाणु- स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो घन परिमण्डल है वह जघन्यतः चालीस- प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और चालीस आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त प्रदेशी ( परमाणु- स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है। 1000
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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