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________________ भगवती सूत्र श. २५ : उ. २,३ : सू. २७-३६ २७. भन्ते! जीव जिन द्रव्यों का तैजस शरीर के रूप में ग्रहण करता है.... - पृच्छा । गौतम ! स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता। शेष औदारिक- शरीर की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार कार्मण शरीर की वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् भाव की अपेक्षा भी ग्रहण करता है । २८. जिन द्रव्यों को द्रव्यतः ग्रहण करता है उन्हें क्या एक प्रदेशी द्रव्यों के रूप में ग्रहण करता है ? द्वि-प्रदेशी द्रव्यों के रूप ग्रहण करता है ? इस प्रकार 'पण्णवणा' के भाषा-पद (११ / ४९-६८) की भांति वक्तव्यता । यावत् स्वविषय का ग्रहण करता है, अविषय का ग्रहण नहीं करता, अनुक्रम से ग्रहण करता है, अक्रम से नहीं करता । २९. भन्ते ! उन्हें कितनी दिशाओं से ग्रहण करता है ? ३०. गौतम ! निर्व्याघात स्थिति में .... औदारिक- शरीर की भांति (भ. २५/२५) वक्तव्यता । भन्ते ! जीव जिन द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय के रूप में ग्रहण करता है ?.... पृच्छा। वैक्रिय - शरीर की भांति स्थित और अस्थित दोनों प्रकार के द्रव्यों को ग्रहण करता है । इसी प्रकार यावत् जिह्वेन्द्रिय की वक्तव्यता । स्पर्शेन्द्रिय की औदारिक- शरीर की भांति वक्तव्यता । निर्व्याघात की स्थिति में छहों दिशाओं से, व्याघात की स्थिति में कदाचित् तीन, कदाचित् चार, कदाचित् पांच दिशाओं से ग्रहण करता है। मनो-योग की कार्मण शरीर की भांति वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है - नियमतः छहों दिशाओं से ग्रहण करता है । इसी प्रकार वचन - योग की वक्तव्यता । काय-योग की औदारिक- शरीर की भांति वक्तव्यता । ३१. भन्ते ! जीव जिन द्रव्यों को आनापान के रूप में ग्रहण करता है ?.... पृच्छा । औदारिक-शरीर की भांति वक्तव्यता । यावत् स्यात् पांच दिशाओं से ग्रहण करता है। ३२. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । तीसरा उद्देशक संस्थान - पद ३३. भन्ते ! संस्थान कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! संस्थान छह प्रज्ञप्त हैं, जैसे- परिमण्डल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण, आयत, अनित्थंस्थ-अनियमित आकार वाला । ३४. भन्ते ! परिमण्डल संस्थान क्या द्रव्य की अपेक्षा संख्येय हैं ? असंख्येय हैं ? अनन्त हैं ? गौतम ! संख्येय नहीं हैं, असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं। ३५. भन्ते ! वृत्त संस्थान....? इसी प्रकार यावत् अनित्थंस्थ- संस्थान की वक्तव्यता । इसी प्रकार प्रदेश की अपेक्षा वक्तव्यता । इसी प्रकार द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा वक्तव्यता । ३६. भन्ते ! परिमण्डल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण, आयत और अनित्थंस्थ - इन छह संस्थानों में द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेश की अपेक्षा तथा द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा कौन किनसे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? ७८६
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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