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________________ श. १२ : उ. ४ : सू. ६९-७३ चौथा उद्देशक भगवती सूत्र परमाणु - पुद्गलों का संघात - भेद - पद ६९. राजगृह नाम का नगर यावत् गौतम स्वामी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले- भंते ! दो परमाणु - पुद्गल एकत्र संहत होते हैं, उस संहति से क्या निष्पन्न होता है ? गौतम ! द्वि-प्रदेशी स्कन्ध निष्पन्न होता है। उसके दो भागो में विभक्त होने पर दो स्वतंत्र परमाणु - पुद्गल हो जाते हैं। ७०. भंते ! तीन परमाणु- पुद्गल एकत्र संहत होते हैं, उस संहति से क्या निष्पन्न होता है ? गौतम ! तीन- प्रदेशी स्कन्ध निष्पन्न होता है । वह टूटने पर दो या तीन भागों में विभक्त होता है दो भागों में विभक्त होने पर एक ओर एक परमाणु- पुद्गल, दूसरी ओर द्वि-प्रदेशी स्कन्ध होता है । तीन भागों में विभक्त होने पर तीन स्वतंत्र परमाणु - पुद्गल हो जाते हैं । ७१. भंते! चार परमाणु- पुद्गल एकत्र संहत होते हैं उस संहति से क्या निष्पन्न होता है ? गौतम ! चार प्रदेशी स्कन्ध निष्पन्न होता है। वह टूटने पर दो, तीन अथवा चार भागों में विभक्त होता है । दो भागों में विभक्त होने पर एक ओर एक परमाणु- पुद्गल, दूसरी ओर तीन- प्रदेशी स्कन्ध होता है अथवा दो द्विप्रदेशी स्कन्ध होते हैं । तीन भागों में विभक्त होने पर - एक ओर स्वतंत्र दो परमाणु- पुद्गल, दूसरी ओर द्वि-प्रदेश स्कन्ध होता है । चार भागों में विभक्त होने पर - चार स्वतंत्र परमाणु - पुद्गल हो जाते हैं । ७२. भंते ! पांच परमाणु- पुद्गल एकत्र संहत होते हैं, उस संहति से क्या निष्पन्न होता है ? गौतम ! पांच- प्रदेशी स्कन्ध निष्पन्न होता है । वह टूटने पर दो, तीन, चार अथवा पांच भागों में विभक्त होता है दो भागों में विभक्त होने पर एक ओर एक परमाणु- पुद्गल दूसरी ओर चतुष्प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर द्वि-प्रदेशी स्कंध, दूसरी ओर त्रि-प्रदेशी स्कंध होता है। तीन भागों में विभक्त होने पर एक ओर दो स्वतंत्र परमाणु- पुद्गल दूसरी ओर त्रि-प्रदेशी स्कंध होता है अथवा एक ओर एक स्वतंत्र परमाणु- पुद्गल, दूसरी ओर दो द्वि-प्रदेशी स्कंध होते हैं । चार भागों में विभक्त होने पर एक ओर तीन स्वतंत्र परमाणु - पुद्गल, दूसरी ओर द्वि- प्रदेशी स्कंध होता है । पांच भागों में विभक्त होने पर पांच स्वतंत्र परमाणु- पुद्गल हो जाते हैं । ७३. भंते ! छह परमाणु- पुद्गल एकत्र संहत होते हैं, उस संहति से क्या निष्पन्न होता है ? ४५४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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