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________________ श. १२ : उ. २ : सू. ५५-५९ भगवती सूत्र ५५.भंते ! जीवों का बलिष्ठ होना अच्छा है ? दुर्बल होना अच्छा है ? जयंती ! कुछ जीवों का बलिष्ठ होना अच्छा है, कुछ जीवों का दुर्बल होना अच्छा है। ५६.भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- कुछ जीवों का बलिष्ठ होना अच्छा है, कुछ जीवों का दुर्बल होना अच्छा है ? । जयंती ! जो ये जीव अधार्मिक यावत् जो ये जीव अधर्म के द्वारा आजीविका चलाते हुए विहरण कर रहे हैं, उन जीवों का दुर्बल होना अच्छा हैं। उन जीवों के दुर्बल होने से वे अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखी करने के लिए यावत् परितप्त करने के लिए प्रवृत नहीं होते। उन जीवों के दुर्बल होने से स्वयं को, दूसरे को, दोनों को अनेक अधार्मिक संयोजनाओं में संयोजित नहीं करते, इसलिए उन जीवों का दुर्बल होना अच्छा है। जयंती ! जो ये जीव धार्मिक यावत् धर्म के द्वारा आजीविका चलाते हुए विहरण करते हैं, उन जीवों का बलवान होना अच्छा हैं। वे जीव बलवान होने पर अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखी न करने के लिए यावत् परितप्त न करने के लिए प्रवृत होते हैं। वे जीव बलवान होने पर स्वयं को, दूसरों को, दोनों को अनेक धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते हैं। इसलिए उन जीवों का बलवान होना अच्छा है। जयंती इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है कुछ जीवों का बलवान होना अच्छा है। कुछ जीवों का दुर्बल होना अच्छा है। ५७. भंते ! जीवों का दक्षत्व अच्छा है ? आलस्य अच्छा है ? __ जयंती ! कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है, कुछ जीवों का आलस्य अच्छा है। ५८. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है, कुछ जीवों का आलस्य अच्छा है? जयंती ! जो ये जीव, अधार्मिक यावत् अधर्म के द्वारा आजीविका चलाते हुए विहरण करते हैं, उन जीवों का आलस्य अच्छा है। वे जीव आलसी होने पर अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखी करने के लिए यावत् परितप्त करने के लिए प्रवृत्त नहीं होते। वे जीव आलसी होने पर स्वयं को, दूसरों को, दोनों को अनेक अधार्मिक संयोजनाओं में संयोजित नहीं करते। इसलिए उन जीवों का आलस्य अच्छा है। जयंती ! जो ये जीव धार्मिक यावत् धर्म के द्वारा आजीविका चलाते हुए विहरण करते हैं। उन जीवों का दक्षत्व अच्छा है। वे जीव दक्षता के कारण अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्वों को दुःखी ने करने के लिए यावत् परितप्त न करने के लिए प्रवृत्त होते हैं। वे जीव दक्षता के कारण स्वयं को, दूसरे को, दोनों को अनेक धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते हैं। वे जीव दक्षता के कारण अनेक आचार्यों के वैयावृत्य, उपाध्यायों के वैयावृत्य, स्थविरों के वैयावृत्य, तपस्वियों के वैयावृत्य, ग्लानों के वैयावृत्य, शैक्षों के वैयावृत्य, कुलों के वैयावृत्य, गणों के वैयावृत्य, संघों के वैयावृत्य और साधर्मिकों के वैयावृत्य द्वारा अपने आप को संयोजित करते हैं, इसलिए उन जीवों का दक्षत्व अच्छा है। जयंती ! यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है-कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है, कुछ जीवों का आलस्य अच्छा है। ५९. भंते ! श्रोतेन्द्रिय के वश आर्त बना हुआ जीव क्या कर्म-बंध करता है ? क्या प्रकर्ष ४५२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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