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________________ श. २४ : उ. १२ : सू. २१३-२१८ भगवती सूत्र असुरकुमार के गमक-सदृश नौ गमक वक्तव्य हैं (भ. २४/२०६-२१०), इतना विशेष है-स्थिति और काल की अपेक्षा जाननी चाहिए। स्थिति जघन्यतः दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक पल्योपम। शेष पूर्ववत्। पैंतीसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में ज्योतिष्क-देवों का उपपात-आदि २१४. (भन्ते!) यदि ज्योतिष्क-देवों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या चन्द्रविमान-ज्योतिष्क-देवों से उत्पन्न होते हैं यावत् ताराविमान-ज्योतिष्क-देवों से उत्पन्न होते हैं? गौतम! चन्द्रविमान-ज्योतिष्क-देवों से उत्पन्न होते हैं यावत् ताराविमान-ज्योतिष्क-देवों से उत्पन्न होते हैं। २१५. भन्ते! ज्योतिष्क-देव जो पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है? लब्धि असुरकुमार की भांति वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-एक तेजो-लेश्या प्रज्ञप्त है, ज्ञान तीन, अज्ञान नियमतः तीन। स्थिति-जघन्यतः एक-पल्योपम-का-आठवां-भाग, उत्कृष्टतः एक-लाख-वर्ष-अधिक-एक-पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी। (कायसंवेध) काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्महत-अधिक-पल्योपम-का-आठवां-भाग, उत्कष्टतः एक-लाख-बाईस-हजार-वर्ष-अधिक-एक-पल्योपम–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। इसी प्रकार शेष आठ गमक वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-स्थिति और काल की अपेक्षा ज्ञातव्य है। छत्तीसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में वैमानिक-देवों का उपपात-आदि २१६. (भन्ते!) यदि वैमानिक-देवों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या-कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं? कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते गौतम! कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न नहीं होते। २१७. (भन्ते!) यदि कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या सौधर्म-कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं यावत् अच्युत-कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं। गौतम! सौधर्म-कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं, ईशान-कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं, सनत्कुमार-देवों से उत्पन्न नहीं होते यावत् अच्युत-कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न नहीं होते। पृथ्वीकायिक-जीवों में सौधर्मवासी-देवों का उपपात-आदि (औधिक और औधिक) २१८. भन्ते! सौधर्मवासी-देव, जो पृथ्वीकायिक-जीवों के रूप में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक-जीव में उत्पन्न होता है? (पृच्छा) इस प्रकार ७५०
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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